Friday, June 1, 2012

मुनिश्री के कड़वे प्रवचन माला का भव्‍य शुभारंभ

मुनिश्री तरूणसागर महाराज के कड़वे प्रवचन शुक्रवार को शहर के ऐतिहा‍सिक लक्ष्‍मण मैदान में प्रारंभ हुए। इस दौरान विभिन्‍न आयोजनों के चित्रों में श्रद्धा व उत्‍साह का माहौल देखा गया।











Tuesday, May 22, 2012

सागवाड़ा में गुरू दीक्षा कल

मुनि श्री तरूण सागर के सानिध्‍य में बुधवार को सागवाड़ा कस्‍बे में गुरूदीक्षा कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। 

Sunday, May 20, 2012

- सागवाड़ा में कड़वे प्रवचन माला का दूसरा दिन


ईष्र्या करने वालों को नहीं मिलता है ईश्वर-तरूण सागर

- कथनी करनी के भेद से बढ़़ी विषमताएं- दुनिया चलती है दोहरी नीति से
सागवाड़ा। क्रांतिकारी राष्ट्र संत मुनिश्री तरूण सागर महाराज ने कहा है कि ईष्र्या करने वालो को कभी भी ईश्वर नहीं मिलता। ईश्वर सदैव मन की निर्मलता और बाल सुलभ निष्ठलता से प्राप्त होता है। उन्होने कहा कि ईष्र्या करनी ही है तो टाटा, बिरला, डालमिया से करों ताकि उनकी होड़ करते-करते उनसे आगे नहीं तो उनकी बराबरी में पहुंच सको। ईष्र्या करनी ही है तो भगवान राम, कृष्ण, महावीर से करों ताकि राम नहीं तो कम से कम हनुमान तो बन ही सको। सड़क छाप 
से ईष्र्या करके या पाओगे।


मुनिश्री डूंगरपुर जिले के सागवाड़ा कस्बे में कड़वे प्रवचन माला के दूसरे दिन रविवार को हजारो श्रद्धालुओं की धर्मसभा में प्रवचन कर रहे थे। मुनिश्री ने संसार की खामियों और खूबियों पर विस्तार से प्रकाश डाला और कहा कि यह संसार दोगली नीति से चलता है, इसने अपनी दोहरी नीति अपना रखी है। मुनिश्री ने कहा कि कथनी करनी का भेद वर्तमान समय में सारी विसंगतियॉ और विषमताएं पैदा कर रही है। मुनिश्री ने कहा कि जीवन में कथनी और करनी का अंतर मिटाएं बिना जीवन की सार्थकता प्राप्त नहीं होगी।

ये मनहूस मिलावट

सागवाड़ा। मुनिश्री ने वर्तमान युग को मिलावट भरा युग करार देते हुए कहा कि वर्तमान का भ्रष्टाचार और बेईमानी मिलावट की देन है। उन्होने कहा कि पदार्थो की मिलावट से कही ज्यादा खतरनाक विचारों की मिलावट है। मेरी नजर में पदार्थ की मिलावट से जीवन जितना बर्बाद नहीं होता उससे कही ज्यादा बर्बादी विचारों की मिलावट से होती है। मुनिश्री ने कहा कि एक आदमी बाजार से जहर लाकर उसे जीवन से निजात पाने की उम्मीद के साथ खाकर सो गया। दूसरे दिन वह बडे आराम से उठा। अगले दिन वह मिठाई की दुकान से कुछ पेडे ले आया, दो चार पेडे खाएं और सो गया। बेचारा आज तक नहीं उठा। ये हाल है आज के मिलावट भरे जमाने के। मुनिश्री ने कहा कि पदार्थो की मिलावट एक बार तो चल जाए लेकिन  विचारो की मिलावट से जीवन में जो जहर घुलता है उसका कोई उपचार नहीं।

एक चेहरे पर कई चेहरे

सागवाड़ा। मुनिश्री ने कहा कि आज के इंसान ने अपने चेहरे पर कई चेहरे लगा रखे है। एक चेहरा हो तो उसे पहचाने। इसने तो प्याज के छिलके की तरह चेहरे पर चेहरा, उस पर फिर चेहरा और उस पर फिर चेहरा लगा रखा है। असली चेहरे का पता ही नहीं चलता। मुनिश्री ने कहा कि आज के आदमी ने जिन्दगी जीने के लिए कसौटी भी दोहरी अपना रखी है। अपने लिये कुछ और दूसरो के लिए कुछ और। अपना बेटा इंजीनियर बन जाए तो उसकी मेहनत और योग्यता में कसीदे पढ़ने लगता है और पडौसी का बेटा इंजीनियर बन जाए तो कहेगा घुस देकर बना होगा। यही नहीं खुद का दिवाला निकल जाए तो आदमी कहता है कि भगवान की मर्जी और दूसरे का दिवाला निकले तो प्रतिक्रिया में कहता है पाप का घड़ा एक दिन तो फुटना ही था। मुनिश्री ने कहा कि एक चेहरे की जिन्दगी जीये बिना धर्माचरण नहीं हो सकता। आज आदमी का मंदिर की सीढ़ियों पर चेहरा कुछ और होता है और मंदिर में कुछ और होता है। जो चेहरा मंदिर में रहेगा वहीं चेहरा दुकान पर भी मिले तभी उद्धार होगा। मुनिश्री ने कहा कि यह मन बड़ा टेढ़ा है। मुख पर कुछ और लगता है और मन में कुछ और रखता है। रे चपल मन की चर्चित कविता की पंक्तियों के जरिए मुनिश्री ने नसीहत दी कि दुनिया को देख कर मंजिल तय मत करो, मंजिल तय करनी है तो संत की जिन्दगी देखकर तय किया करों।

वक्‍तव्य का विरोध

सागवाड़ा। मुनिश्री ने दुनिया गोल होने की वैज्ञानिक व्याख्या को रेखांकित करते हुए कहा कि माना कि यह दुनिया गोल है लेकिन यह सच्ची बातों का तुरंत विरोध करने में भी नहीं चुकती। मुनिश्री ने कहा कि आज से 24 साल पहले वे इसी सागवाड़ा कस्बे में थे और 24 वर्षो में देश का भ्रमण कर पुनः सागवाड़ा लौटे है। कुछ वर्षो पहले उन्होने एक वतव्य दिया था, जिस पर विरोध का भुचाल सा आ गया था। मुनिश्री ने कहा कि उन्होने भगवान महावीर को मंदिरों और मंदिरो की चारदीवारी से मुक्त कर चौराहे पर लाने का संकल्प लेकर एक वतव्य दिया था। इस वतव्य पर जैन समाज के ही कई लोगो ने कड़ा विरोध किया था लेकिन मैं अपने इस वतव्य पर अडिग रहा और आज इसी का परिणाम है कि 36 कौम एक जाजम पर बैठकर भगवान महावीर का संदेश सुनते है। कई लोग मुझसे पूछते है कि मुनि जी आपने सन्यासी बनकर इतने वर्षाे में या जोड़ा ? मैं कहता हॅू कि सन्यासी बनकर मैंने जोड़ने के नाम पर सब कुछ छोड़ा ही छोड़ा है और जोड़ने के नाम पर मानव से मानव को जोड़ा है। किसी संत के जीवन में इंसान से इंसान को जोड़ने की उपलधि से बड़ा कोई काम नहीं होता।

कमाल की जोड़ी और कोंधती बिजलियॉ

सागवाड़ा। मुनिश्री ने परिवार में मिलन सारिता और प्रेम भाव बनाये रखने के गुर बताएं, साथ ही चुटकियॉ लेकर धर्मसभा में मौजुद हजारों श्रद्धालुओं के चेहरो पर हंसी की रेखाएं भी खिंची। मुनिश्री ने कहा कि वर्तमान समय में पति-पत्नि के बीच मन-मुटाव और कलह के वाकये बढ़ रहे है। उन्होने परिहास में कहा कि लोग कहते है कि जोड़ी ऊपर वाला बनाता है और वह भी कमाल की जोड़ियॉ बनाता है। मैं कहता हॅू कि जब जोड़ी ऊपर वाला ही बनाता है तो बिजलियॉ तो गिरेगी ही। इन बिजलियों से डरो मत। मुनिश्री ने पुराने समय से चले आ रहे सात फेरो के सात वचनों को आउट ऑफ डेट करार देते हुए कहा कि 21वीं सदी में नये वचनों की पालना की आवश्यकता है। इन वचनों में केवल एक वचन का पालन वर-वधु कर ले तो दाम्पत्य जीवन सुखी हो जाए। मुनिश्री ने कहा कि फेरे लेते समय दुल्हा-दुल्हन एक दूसरे को ये वचन दे कि उनमें से कोई भी एक जब भी आग बनेगा तो दूसरा पानी बन जाएगा। जब भी एक कोई अंगारा बन जाए तो दूसरा जल धारा बनकर परिवार में शांति बनाये रखने में अपनी समझदारी निभाएगा।

सबसे सुखी कौन

सागवाड़ा। मुनिश्री ने कहा कई समझदार जिज्ञासु लोग मुझसे सवाल करते है। एक दिन एक जिज्ञासु ने मुझसे पूछा कि मुनिश्री इस संसार में सबसे सुखी कौन है। मैने उार दिया जिसे सोने के लिए नींद की गोली और जागने के लिए घड़ी के अलार्म की जरूरत नहीं होती, मेरी नजर में इस संसार का सबसे बड़ा सुखी व्यक्ति वहीं है। मुनिश्री ने कहा कि आज कर्ज लेकर झूठी शान दिखाने का नशा चल पडा है, यह ठीक नहीं है। कई विािय एजेन्सियॉ लॉन देने के लिए तैयार बैठी है लेकिन याद रखना किश्ते चुकाते-चुकाते एक दिन खुद चुक जाओगे। जो फर्ज चुकाएं लेकिन कभी झूठी शान के लिए लिया कर्ज न चुकाएं वह मेरी नजर में सबसे सुखी है। जो कठिन पल में मुस्कुराता है, अपना काम खुद कर लेता है, मंदिर तक नंगे पाव जाता है, मेरी नजर में वह सबसे बड़ा सुखी है। मुनिश्री ने कहा कि लाख घोड़ा गाड़ी, नौकर, चाकर, बंगले के  मालिक याें न हो, मंदिर हमेशा नंगे पांव पैदल जाया करो। वहां पर केडर नहीं देखा जाता। मंदिर में भगवान तुम्हारी सरलता और निर्मलता देखता है।

तो फिर यहां नौकर क्‍यों

सागवाड़ा। मुनिश्री ने यथा नाम तथा गुण की उक्ति चरितार्थ करते हुए कड़वे प्रवचन में जीवन की सेहत के लिए कड़वी बात प्रकट करते हुए कहा कि आज कल इंसान इतना एहसान फरामोश हो गया है कि वह मंदिर में पूजा करने और भगवान को याद करने के लिए भी नौकर रखने लगा है। मुनिश्री ने कहा कि पूरे देश में यात्रा करने के बाद भी उन्हें आज तक ऎसा कोई पुरूष नहीं मिला जो शादी करने के बाद पत्नि के सामने प्रेम प्रकट करने के लिए नौकर रखता हो। अरे ना समझ़ो, जब इस सांसारिक रस्म के लिए नौकर नहीं रख सकते तो भगवान के लिए नौकर क्‍यों रखते हो। मुनिश्री ने जीवन की सफलता और सदैव अस्तित्व का अहसास करते रहने के लिए तीन काम स्वयं करने के सुझाव दिये। उन्होने कहा कि घर के एक छोटे से कौने में ही सही रोजाना खुद जाडू लगाया करों, अपना तोलिया ही सही खुद धोया करो और माता-पिता, गुरू तथा ईश्वर की पूजा और सेवा भी खुद किया करो। इन कामो के लिए नौकर रखोगे तो जीवन में ईश्वर कृपा नहीं मिलेगी। मुनिश्री ने वर्तमान समय में वृद्धा आश्रम खुलने को दुर्भाग्यशाली बताया और कहा कि यह भारतीय संस्कृति के खिलाफ है।

तर्क ने किया बेड़ा गर्क

सागवाड़ा। मुनिश्री ने वर्तमान समय में अनावश्यक बातों पर तर्क करने की आदत पर चिंता जताई और कहा कि आज के इंसान के तर्क करने की आदत के कारण उसका बेड़ा गर्क हो रहा है। जहां तर्क है वहां नर्क है और जहां समर्पण है वहां स्वर्ग है। मुनिश्री ने अपनी बात को दोहराते हुए कहा कि जीवन में 90 प्रतिशत प्रश ऎेसे है जिनका जवाब देना जरूरी नहीं होता लेकिन आदमी है कि यों का इतना गुलाम हो गया है कि सामान्य बात पर भी यो की बारीश कर देता है। परिवार में तो सांस हो या बहू, पुत्र हो या पिता, भाभी हो या ननद, मॉ हो या बेटी हर कोई इस यों की गिरफ्त में है। मुनिश्री ने क्रोध पर अंकुश के लिए प्रेरित किया और कहा कि वर्तमान में इस देश में अगर कुछ धर्मनिरपेक्ष है तो वह केवल क्रोध है। यह क्रोध हर मजहब के आदमी पर हावी है। उन्होने कहा कि क्रोध से नन्हे शिशु को पिलाया गया दूध और घर में पति अथवा किसी भी सदस्य को क्रोध के साथ कराया गया भोजन जहर बन जाता है।







Saturday, May 19, 2012

सागवाड़ा में कड़वे प्रवचन माला शुरू



कोई जागे न जागे उसका मुकद्दर
मेरा धर्म जगाना है-राष्ट्र संत तरूण सागर


- पहले दिन खुद में बदलाव की नसीहत


सागवाड़ा 19 मई। कोई जागे न जागे यह उसका मुकद्दर है। मैं तो मनुष्य मात्र के जीवन और जीवन में परिवर्तन के लिए निकला हॅू। मेरा धर्म जगाना है। यह कहना है कि राष्ट्र संत तरूण सागर महाराज का। 
डूंगरपुर जिले के सागवाड़ा कस्बे में शनिवार से शुरू हुए मुनिश्री के कड़वे प्रवचनों के पहले दिन क्रांतिकारी राष्ट्रसंत ने स्वयं में बदलाव पर जोर दिया। उन्होने कहा ये परिवर्तन के क्षण है। इस बात के मुगालते में मत रहो कि दुनिया बदल जाएगी। सच तो यह है कि हमें ही बदलना होगा। हममें बदलाव आने पर सारी स्थिति अपने आप बदल जाएगी। उन्होने सोच और नजरिये के बदलाव पर जोर दिया और कहा कि नजर बदलती है तो नजारे अपने आप बदल जाते है। मुनि श्री ने कहा दुनिया के कहने की परवाह मत करों, दुनिया का तो काम ही कहना है।
मुनि श्री ने कहा कि सुनना सिखों। आज विडम्बना यह है हर कोई सुनाना चाहता है, सुनना कोई नहीं चाहता। जरूरी नहीं है कि हर प्रश्र का उत्तर दिया जाए। दुनिया में नब्बे प्रतिशत प्रश्र ऐसे है जिनका जवाब देना जरूरी नहीं होता। लेकिन हम है कि गैरवाजिब सवालों के जवाब देने में भी नहीं चुकते।

जब सत्संग से लौटो तो

सागवाड़ा। मुनि श्री ने सत्संग के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा कि सत्संग केवल शब्दों का आडम्बर नहीं है सत्संग से जीवन में परिवर्तन आना चाहिए। जीवन की सोच बदलनी चाहिए। उन्होने परिवार को हरिद्धार बनाने में सत्संग की भूमिका रेखांकित करते हुए कहा यदि सांस सत्संग से घर लौटे तो बहू को लगना चाहिए कि अम्माजी गंगाजी नहा के आई है। यदि बहुरानी सत्संग से घर लौटे और सांस किन्हीं कारणों से सत्संग में न आ पाई हो तो उसे लगना चाहिए कि बहुरानी संस्कारी हो गई है और उसमें बदलाव को अनुभव करके सांस के मुंह से बर्बस निकलना चाहिए, बहू मैंं तुझसे क्या कहॅू आईलवयू यही नहीं बेटे के मन में पिता के प्रति विचार बदलने चाहिए। सत्संग से लौटकर पुत्र के मन में अपने हाथ में तिजोरी की चाबी आने के भाव बदल जाने चाहिए। सत्संग का असली मर्म यही है कि श्रद्धालु श्रोता के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आना चाहिए। मुनि श्री ने कहा कि सत्संग से व्यक्ति के जीवन में साहस, सहनशीलता और सत्य के सदगुणों का  विकास होता है।

जिन्दा आदमी की निन्दा

सागवाड़ा। मुनिश्री ने जीवन में निन्दा के महत्व को विवेचित करते हुए कहा कि निन्दा जिन्दा होने का लक्षण है। आज तक संसार में किसी भी मुर्दा व्यक्ति की निन्दा नही हुई। निन्दा होने का अर्थ है व्यक्ति जिन्दा है इसलिए निन्दा की परवाह भी मत करों। मुनि श्री ने ईश्वर से अनुठी प्रार्थना करने की सिख देते हुए कहा कि भगवान की तारीफो में पुल बांधने की प्रार्थनाएं तो पूजा ग्रहो में की गई दीवारो से बाते है। असली प्रार्थना तो यह है कि साधक ईश्वर से कहे कि हे प्रभु मुझे इतनी ताकत देना कि मैं अपनी आलोचनाएं सह सकु।

बौने पन का अहसास

सागवाड़ा। मुनिश्री ने स्वयं के मूल्यांकन पर जोर देते हुए कहा कि इंसान को सदैव आत्मनिरीक्षण करते रहना चाहिए। भगवान ज्ञान के सागर है, करूणा के सागर है, दयानिधि है, परम शक्तिशाली है, सबको पार लगाने वाले है आदि कथन को जगजाहिर है। भगवान क्या है वो सबको पता है। अरे पगले तू क्या हैं इस बात का पता कर। मुनिश्री ने अनुठे दृष्टांत के साथ स्पष्ट किया कि हिमालय के सामने जाकर जब अपने बौने पन का अहसास हो जाए तो समझना कि हिमालय की यात्रा सार्थक हो गई।  इसलिए ताकतवर के सामने अपने अस्तित्व का भान हो जाए तभी समझना कि हमारी इबादत पूरी हो गई।

इससे बड़ा आरक्षण क्या होगा

सागवाड़ा। मुनिश्री ने कन्या भ्रुण हत्या जैसे ज्वलंत मुद्दे पर मार्मिक विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज समाज में हालात ऐसे है कि घर में बेटी पैदा हो तो सबको मुंह बिगडने लगता है। बेटा पैदा होने पर ऐसा नाचते है मानो उन्हे तारने वाला आ गया। उन्हे पता नहीं है कि यह तारने वाला नहीं मारने वाला है। मुनिश्री ने हर कही तीस प्रतिशत महिला आरक्षण की मांग की चर्चा करते हुए कहा कि वे नारी शक्ति के संवर्धन के पक्षधर है, लेकिन भारत के शाश्वत चिंतन में आरक्षण का सबसे बड़ा उदाहरण पेश कर रखा है। जब पराये घर से एक बेटी बहु बनकर घर में आती है, आते ही उस अंजान महिला को घर की तिजोरी की चाबी थमाकर उसे मालकिन बना देने की परम्परा आरक्षण का सबसे बड़ा उदाहरण है। मुनिश्री ने महिलाओं से मुखातिब होते हुए कहा कि बोलबाला तो आपका ही है, ताकत चाहिए तो इंसान देवी दुर्गा की शरण लेता है, धन के लिए लक्ष्मी की और बुद्धि के लिए सरस्वती की गुहार लगाता है। अब बचा क्या जो पुरूष ब्रह्मा, विष्णु, महेश के पास जाएगा। यही नहीं भारतीय शास्त्रों ने सीताराम, राधेश्याम की व्यवस्था करके नारी सम्मान को नई ऊचाईयॉ दी है। मुनिश्री ने कहा कि नारी शक्ति के कारण धर्म जिन्दा है।

प्रधानमंत्री कौन

सागवाड़ा। कड़वे प्रवचनो में व्यंग के साथ-साथ हास-परिहास गोल देने में समर्थ राष्ट्र संत तरूण सागर महाराज ने शनिवार को प्रवचन के पहले दिन राजनीति पर भी खूब प्रहार किये और अपनी चुटकियों से भरे पाण्डाल में ठहाके लगवाएं। मुनिश्री ने कहा नारी हर हाल में सब पर भारी है। इसी पर मुनिश्री ने कहा कि देश और दुनिया के किसी भी इंसान से पूछो कि भारत का प्रधानमंत्री कौन है तो जो जवाब मिलता है वह नारी की असली ताकत बताने वाला होता है। मुनिश्री ने संकतो में युपीए संयोजक एवं कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी की राजनीतिक ताकत का जिक्र करते हुए महिलाओं से कहा कि ताकत में वे पुरूषों से कम नहीं है।

आधे दु:ख उधार के

सागवाड़ा। मुनिश्री ने जीवन में सुख दु:ख की चर्चा करते हुए कहा कि वर्तमान में हर एक इंसान के जीवन में 50 प्रतिशत दु:ख उधार लिये हुए है ये उधार भी ज्यादातर पडौस से लिया हुआ है। मुनिश्री ने कहा पडौसी की प्रगति, उन्नति, समृद्धि आदि को देखकर मन में जो ईष्र्या भाव पैदा होते है वहीं दु:ख बन जाते है। मुनिश्री ने कहा कि अमेरिका में बिजली चली जाए तो व्यक्ति फ्यूज देखता है। ब्रिटेन में बिजली विभाग को शिकायत की जाती है लेकिन भारत में बिजली चली जाने पर आदमी पडौस में झाकता है। उसके वहां गई की नहीं। यदि पडौसी की बिजली भी गुल है तो मन में संतोष होने लगता है कि उसके वहां भी नहीं है। इस नजरिये के चलते जीवन में न सुखी हो पाओगे न प्रसन्न। मैं हर एक इंसान के चेहरे पर मुस्कान देखने का मकसद लेकर सन्यास में निकला हॅू। आपके चेहरे पर मुस्कान देखना ही मेरा लक्ष्य है। सहनशील बन जाओं, खुद में परिवर्तन के लिए तैयार हो जाओ और दिल बड़ा कर लो तब आपके चेहरे से मुस्कान कभी नदारद नहीं होगी।

Sunday, April 8, 2012

भक्ति के बिना जीवन निरर्थक- तरूण सागर



जैन चैत्यालय से विहार
      बांसवाड़ा 8 अप्रैल। राष्ट्र संत तरूण सागर महाराज ने कहा है कि  संत का सानिध्य मनुष्य को भक्ति, आस्था और श्रद्धा से युक्त जीवन जीने का अवसर देता है लेकिन  दुर्भाग्यशाली लोग इस अवसर पर लाभ नहीं उठा पाते। उन्होने कहा है कि भक्ति के बिना जीवन निरर्थक है।
      महाराज रविवार को गांधी मूर्ति स्थित जैन चैत्यालय से विहार कर मोहन कॉलोनी स्थित जैन मंदिर में दर्शन के बाद उदयपुर रोड़ स्थित अशोक वोरा के निवास गुरू सदन में श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। महाराज श्री ने कहा कि संत जहां से चलते है वहां सूना-सूना हो जाता है तथा जहां पहुंचते है वहां सोना-सोना हो जाता है। मुनि श्री ने कहा जिस श्रद्धालु के यहां संत का आगमन हो वह भाग्यशाली कहा जाता है। जिस श्रद्धालु को संत की सेवा का अवसर मिले वह अहोभाग्यशाली कहा जाता है। जिसे संत याद करें वह महाभाग्यशाली और जो संतो को याद करें वह सौभाग्यशाली माना जाता है लेकिन इन सबके बावजूद भी जिसके मन मस्तिष्क में भक्ति भाव पैदा न हो और सुधरने को तत्पर न रहें वह दुर्भाग्यशाली है।
      चैत्यालय से भव्य जुलुस और गाजे-बाजे के साथ महाराज श्री का विहार हुआ। शाम 6 बजे मोहन कॉलोनी स्थित जैन मंदिर में दर्शन किये तथा वहां से भव्य जुलुस उदयपुर रोड़ स्थित मोहन कॉलोनी जैन समाज के अध्यक्ष अशोक वोरा के निवास गुरू सदन पहुंचा। यहां वोरा परिवार व श्रद्धालुओं ने मुनि श्री की आरती उतारकर पधरावनी की। धर्मसभा में जैन समाज के महामंत्री डॉ. दिनेश जैन ने मुनि श्री के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला। जैन समाज के अध्यक्ष एवं गुरू सदन के अशोक जैन ने मुनि श्री के अपने निवास पर पधारने के लिए मुनि का आभार व्यक्त किया। उन्होेने कहा कि अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मुनि श्री का उनके निवास पर पधारना पूर्वजो के पुण्य प्रताप का परिणाम है। उन्होने कहा कि मुनि श्री का आना उनके जीवन में शबरी की कुटिया पर राम के आगमन जैसी खुशी और पुण्य देने वाला है। संघस्थ संगीतकार सुरेश वाडेकर ने मंगला चरण किया। मुनि श्री की मंगल आरती में उपस्थित श्रद्धालुओं ने दीप जलाकर महाराज श्री के आगमन की खुशियॉ मनाई।
      आनन्द यात्रा 6 बजे से
      बांसवाड़ा। जीवन को तनाव मुक्त बनाने तथा हास-परिहास के साथ प्रेरक प्रसंगो के जरिए जीवन को ज्ञान धारा से जोड़ने के उद्देश्य से भारत में तरूण सागर महाराज द्वारा शुरू की गई आनन्द यात्रा ऎसा आयोजन है जिसमें बच्चे और वृद्ध के बीच अंतर समाप्त हो जाता है। सभी उम्र के श्रद्धालु इस कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते है। गुरू सदन में निवास करने तक मुनि श्री के सानिध्य में प्रतिदिन शाम 6 बजे से आनन्द यात्रा कार्यक्रम होगा। इस आयोजन में श्रद्धालुओं और मुनि श्री के बीच संवाद का ऎसा सिलसिला चलता है जो ज्ञान भक्ति और श्रद्धा की त्रिवेणी में हर किसी को आप्लावित कर देता है।

Saturday, April 7, 2012

जल रंगोली में उकेरी हस्तियों में राष्ट्रसंत तरूण सागर महाराज



- जल के दिल पर क्रांतिकारी संत का जलवा

अपनी विलक्षण प्रवचन अभिव्यक्ति के जरिए विश्व के करोड़ो श्रद्धालुओं के दिल में श्रद्धा, आस्था और भक्ति के साथ स्थान बनाने वाले क्रांतिकारी राष्ट्र संत मुनि श्री तरूण सागर महाराज को जल ने भी अपने दिल में जगह दे दी है।
मध्यप्रदेश के देवास शहर में एक कला साधक शिक्षक राजकुमार चंदन ने अपने सहयोगियो के साथ जल में 20वीं सदी के 101 नामचीन हस्तियों के चित्र पानी पर रंगोली के रूप में उकेरे और अपना नाम लिम्का बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में दर्ज करा लिया है। उन्हें 101 चित्र पानी पर रंगोली में 25 घंटो में पूरे करने की चुनौती दी गई थी। उन्होने यह काम चुनौती वाले समय के विपरित 24 घंटे 34 मीनट में पूरा कर लिया।

101 हस्तियों में तरूण सागर का जलवा

पानी पर रंगोली ने भारत के जिन महापुरूषो और ख्यातनाम हस्तियों को उकेरा गया उनमें रंगोली के मध्य में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, नीचे के भाग में चन्द्रशेखर आजाद, पश्चिमी छोर पर लाला लाज पतराय तथा पूर्वी छोर पर राष्ट्रसंत तरूण सागर महाराज का चित्र शामिल है। अन्य हस्तियों में पण्डित जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, गुरू गोलवलकर, अबुल कलाम आजाद, भगतसिंह, सुभाषचन्द्र बोस, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, डॉ. राधा-कृष्णन के अलावा आध्यात्मिक हस्तियों में बोहरा समाज के धर्मगुरू सैयदना साहब, श्री श्री रविशंकर, योग गुरू स्वामी रामदेव भी शामिल है।
ऐसे उकेरी जाती है रंगोली
पानी में रंगोली बनाने के लिए सधे हुए हाथ और इस कला की लम्बे समय के तजूर्बे की आवश्यकता होती है। पानी के किनारो पर लकड़ी के बुरादे से प्राकृतिक रंग तैयार कर चित्रकारी के लिए प्रयुक्त रंगो व बांधे रखने के लिए फोम की बोर्डर बनाई जाती है ताकि रंग स्थिर रहे। बोर्डर के भीतर रंग भरे जाते है और अपनी पसन्द के किरदारो को उकेरा जाता है जो उनके चित्र के रूप में उभरकर मुकम्मिल छवि के रूप में उभरते है।

महाभारतकालीन कला है जल रंगोली

जल में रंगोली महाभारत समय की अदभूत कला है जिसे देवास के कला साधक शिक्षक राजकुमार चंदन ने पुर्नजीवित किया है। कहा जाता है कि राजसुय यज्ञ में कौरव और पाण्डव दोनो आमंत्रित किये गये थे। आमंत्रित राजे महाराजाओं के लिए सम्मान में रंगोली बनाई गई थी। वह रंगोली भी जल में ही थी, जिसे दुुर्योधन कालीन समझकर उस कुण्ड में गिर गया था। उसके गिरने पर द्रोपदी ने ठहाका लगाते हुए दुर्योधन पर अंधे का बेटा अंधा व्यंग बाण छोडक़र परोक्ष रूप से महाभारत के युद्ध के कारणों में व्यंग की चिंगारी फेंक दी थी। माना जाता है कि इस कला के लिए कोई प्रशिक्षण केन्द्र नहंी ओर न ही देश में इस तरह की कला का कोई साधक मौजुद है। राजकुमार चंदन देश में इस कला के एक अकेले विलक्षण कलाकार है।

Friday, April 6, 2012

पृथ्‍वीक्‍लब बना तपस्‍थली


मंत्र दीक्षा विधान में गुरूकृपा की बयार चली

बांसवाड़ा, 06,अप्रेल।

प्रख्यात क्रांतिकारी राष्ट्रसन्त तरूणसागर जी महाराज ने कहा है कि जीवन में जिसके गुरू नहीं जीवन उसका शुरू नहीं। मंत्र आध्यात्मिक विज्ञान है और इनका प्रभाव पृथ्वी से लेकर अंतरिक्ष तक व्याप्त और विद्यमान है। महाराज श्री शुक्रवार को शहर के पृथ्वीक्लब में विभिन्न जाति, धर्मो, वर्गो और समुदायों के मुनि भक्त श्रद्धालुओं को मन्त्र दीक्षा प्रदान करने के बाद मन्त्र महिमा तथा दीक्षा के महत्त्व पर प्रवचन कर रहे थे। मुनिश्री ने कहा मन्त्र जाप विधि पूर्वक होना चाहिए। दीक्षा के बाद नियमों का पालन करने पर ही मन्त्र फलित होते है। इस दौरान बांसवाड़ा जिले के विभिन्न गांवो कस्बो से आये मुनि भक्त श्रद्धालुओं परिवारों ने मुनिश्री से मन्त्र दीक्षा ग्रहण कर सात्विक जीवन जीने और जीवन में किसी भी प्रकार का व्यसन न रखने का संकल्प लिया। सांगीतिक प्रस्तुतियों के बीच मन्त्र दीक्षा कार्यक्रम लगभग पौन घण्टा जिसमें दीक्षार्थियों के साथ ही उपस्थित अन्य श्रद्धालुओं मन्त्र मुग्ध हो इस आध्यात्मिक आयोजन में पुण्य अर्जित करने में एकाग्रचित्त रहे।

दीक्षा का अर्थ अहर्निश सेवा - मुनि तरूणसागर 

कार्यक्रम में प्रवचन करते हुए मुनिश्री ने कहा दीक्षा का अर्थ केवल गुरू का सान्निध्य प्राप्त कर लेना नहीं है दीक्षा का मर्म दिन-रात सेवा में जुटे रहना है मुनिश्री ने कहा कि जिस गुरू से दीक्षा प्राप्त करे केवल उनके प्रति ही आदर रखना ही और उनकी सेवा में रत रहना सफल और पूर्ण साधक की पहचान नहीं है सच्चा साधक वह जो प्रत्येक मुनि के प्रति भक्ति भाव रखते हुए नगर आगमन पर उनकी वैयावृत्ति के साथ सेवा सुश्रूषा में उद्यत रहें। मुनिश्री ने कहा कि मन्त्र की महिमा निराली है शुद्ध भाव से जपने पर मन्त्र न केवल मनोरथ सिद्ध करते है बल्कि मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त करते है क्रान्तिकारी संत ने कहा कि विदेश जाने के लिए यात्री को पासपोर्ट की आवश्यकता होती है लेकिन उस यात्री के वस्त्र पर यदि चीटी सवार हो जाए तो उसके लिए पासपोर्ट नहीं चाहिए। गुरू और शिष्य के बीच भी परम पुरूषार्थ प्राप्ति में भी यही सिद्धान्त काम करता है। गुरू मोक्ष का अनुगामी है तो उसकी शरण में पहुंच कर शिष्य स्वत: ही मोक्ष का अधिकारी बन जाता है।

नजारा तपो भूमि जैसा 

आम तौर पर इण्डोर गेम्स तथा अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए प्रयुक्त होने वाला पृथ्वीक्लब शुक्रवार को अपने बदले हुए किरदार में नजर आया। सफेद धोती के परिधान में पुरूष श्रद्धालु तथा श्वेत परिधान में महिला श्रद्धालुओं की उपस्थिति एवं मन्त्र दीक्षा के लिए उनके सम्मुख रखी पूजन सामग्री के बाद जैसे ही मुनिश्री के मुखारविन्द से दीक्षा सम्बन्धित निर्देश स्वर लहरियां क्लब सभागार गूंजना शुरू हुई तब ऐसा लगा मानो पृथ्वीक्लब शहर के मध्य मनोरंजन का केन्द्र न होकर तपोभूमि बन गया हो।
उपस्थित हर उम्र का श्रद्धालु मन को अदभूत आनन्द देने वाले इस दृश्य में स्वयं को लीन करता महसूस हो रहा था। मुनिश्री के साधक भक्त ब्रम्हचारी सचिन भैया व सहयोगी ने मन्त्र दीक्षा कार्यक्रम के दौरान मुनिश्री को गुरू के रूप में विभिन्न प्रकार से जैन शास्त्र सम्बन्ध अध्र्य अर्पण का विधान सम्पन्न कराया। एक घण्टे तक क्लब सभागार स्वाहा के जयघोष से गूंजता रहा।


साबित किया अंगुली पर नचाना

गुरू के आदेश पर भक्त और शिष्य क्या कुछ नहीं कर सकता गुरू की अंगुली के इशारे पर भक्त को नाचना भी पड़ सकता है यह साबित हो गया शुक्रवार को उस समय जब गुरू मन्त्र दीक्षा विधि के दौरान अध्र्य अर्पण प्रक्रिया में दीक्षार्थी श्रद्धालुओं द्वारा नृत्य पूर्वक अंजली दी गई। इसके बाद मुनिश्री ने इस कार्यक्रम के अतिथियों को आदेशित किया कि सभी अतिथि भी नृत्य करेंगे।
गुरू का आदेश शिरोधार्य मानकर आयोजन के अतिथि एडवोकेट सुरेश जैन, तरूणक्रान्ति मंच के ट्रस्टी निर्दोष जैन, मुनि संघ सेवा समिति के अध्यक्ष सुरेश सिंघवी, उपाध्यक्ष अशोक जैन, महामंत्री महावीर बोहरा सहित अन्य अतिथियों ने मुनिश्री के सम्मुख ही भक्ति गीत पर नृत्य प्रस्तुतियां दी और भक्ति की मस्ती में खोकर खूब झूमे।