Tuesday, May 22, 2012

सागवाड़ा में गुरू दीक्षा कल

मुनि श्री तरूण सागर के सानिध्‍य में बुधवार को सागवाड़ा कस्‍बे में गुरूदीक्षा कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। 

Sunday, May 20, 2012

- सागवाड़ा में कड़वे प्रवचन माला का दूसरा दिन


ईष्र्या करने वालों को नहीं मिलता है ईश्वर-तरूण सागर

- कथनी करनी के भेद से बढ़़ी विषमताएं- दुनिया चलती है दोहरी नीति से
सागवाड़ा। क्रांतिकारी राष्ट्र संत मुनिश्री तरूण सागर महाराज ने कहा है कि ईष्र्या करने वालो को कभी भी ईश्वर नहीं मिलता। ईश्वर सदैव मन की निर्मलता और बाल सुलभ निष्ठलता से प्राप्त होता है। उन्होने कहा कि ईष्र्या करनी ही है तो टाटा, बिरला, डालमिया से करों ताकि उनकी होड़ करते-करते उनसे आगे नहीं तो उनकी बराबरी में पहुंच सको। ईष्र्या करनी ही है तो भगवान राम, कृष्ण, महावीर से करों ताकि राम नहीं तो कम से कम हनुमान तो बन ही सको। सड़क छाप 
से ईष्र्या करके या पाओगे।


मुनिश्री डूंगरपुर जिले के सागवाड़ा कस्बे में कड़वे प्रवचन माला के दूसरे दिन रविवार को हजारो श्रद्धालुओं की धर्मसभा में प्रवचन कर रहे थे। मुनिश्री ने संसार की खामियों और खूबियों पर विस्तार से प्रकाश डाला और कहा कि यह संसार दोगली नीति से चलता है, इसने अपनी दोहरी नीति अपना रखी है। मुनिश्री ने कहा कि कथनी करनी का भेद वर्तमान समय में सारी विसंगतियॉ और विषमताएं पैदा कर रही है। मुनिश्री ने कहा कि जीवन में कथनी और करनी का अंतर मिटाएं बिना जीवन की सार्थकता प्राप्त नहीं होगी।

ये मनहूस मिलावट

सागवाड़ा। मुनिश्री ने वर्तमान युग को मिलावट भरा युग करार देते हुए कहा कि वर्तमान का भ्रष्टाचार और बेईमानी मिलावट की देन है। उन्होने कहा कि पदार्थो की मिलावट से कही ज्यादा खतरनाक विचारों की मिलावट है। मेरी नजर में पदार्थ की मिलावट से जीवन जितना बर्बाद नहीं होता उससे कही ज्यादा बर्बादी विचारों की मिलावट से होती है। मुनिश्री ने कहा कि एक आदमी बाजार से जहर लाकर उसे जीवन से निजात पाने की उम्मीद के साथ खाकर सो गया। दूसरे दिन वह बडे आराम से उठा। अगले दिन वह मिठाई की दुकान से कुछ पेडे ले आया, दो चार पेडे खाएं और सो गया। बेचारा आज तक नहीं उठा। ये हाल है आज के मिलावट भरे जमाने के। मुनिश्री ने कहा कि पदार्थो की मिलावट एक बार तो चल जाए लेकिन  विचारो की मिलावट से जीवन में जो जहर घुलता है उसका कोई उपचार नहीं।

एक चेहरे पर कई चेहरे

सागवाड़ा। मुनिश्री ने कहा कि आज के इंसान ने अपने चेहरे पर कई चेहरे लगा रखे है। एक चेहरा हो तो उसे पहचाने। इसने तो प्याज के छिलके की तरह चेहरे पर चेहरा, उस पर फिर चेहरा और उस पर फिर चेहरा लगा रखा है। असली चेहरे का पता ही नहीं चलता। मुनिश्री ने कहा कि आज के आदमी ने जिन्दगी जीने के लिए कसौटी भी दोहरी अपना रखी है। अपने लिये कुछ और दूसरो के लिए कुछ और। अपना बेटा इंजीनियर बन जाए तो उसकी मेहनत और योग्यता में कसीदे पढ़ने लगता है और पडौसी का बेटा इंजीनियर बन जाए तो कहेगा घुस देकर बना होगा। यही नहीं खुद का दिवाला निकल जाए तो आदमी कहता है कि भगवान की मर्जी और दूसरे का दिवाला निकले तो प्रतिक्रिया में कहता है पाप का घड़ा एक दिन तो फुटना ही था। मुनिश्री ने कहा कि एक चेहरे की जिन्दगी जीये बिना धर्माचरण नहीं हो सकता। आज आदमी का मंदिर की सीढ़ियों पर चेहरा कुछ और होता है और मंदिर में कुछ और होता है। जो चेहरा मंदिर में रहेगा वहीं चेहरा दुकान पर भी मिले तभी उद्धार होगा। मुनिश्री ने कहा कि यह मन बड़ा टेढ़ा है। मुख पर कुछ और लगता है और मन में कुछ और रखता है। रे चपल मन की चर्चित कविता की पंक्तियों के जरिए मुनिश्री ने नसीहत दी कि दुनिया को देख कर मंजिल तय मत करो, मंजिल तय करनी है तो संत की जिन्दगी देखकर तय किया करों।

वक्‍तव्य का विरोध

सागवाड़ा। मुनिश्री ने दुनिया गोल होने की वैज्ञानिक व्याख्या को रेखांकित करते हुए कहा कि माना कि यह दुनिया गोल है लेकिन यह सच्ची बातों का तुरंत विरोध करने में भी नहीं चुकती। मुनिश्री ने कहा कि आज से 24 साल पहले वे इसी सागवाड़ा कस्बे में थे और 24 वर्षो में देश का भ्रमण कर पुनः सागवाड़ा लौटे है। कुछ वर्षो पहले उन्होने एक वतव्य दिया था, जिस पर विरोध का भुचाल सा आ गया था। मुनिश्री ने कहा कि उन्होने भगवान महावीर को मंदिरों और मंदिरो की चारदीवारी से मुक्त कर चौराहे पर लाने का संकल्प लेकर एक वतव्य दिया था। इस वतव्य पर जैन समाज के ही कई लोगो ने कड़ा विरोध किया था लेकिन मैं अपने इस वतव्य पर अडिग रहा और आज इसी का परिणाम है कि 36 कौम एक जाजम पर बैठकर भगवान महावीर का संदेश सुनते है। कई लोग मुझसे पूछते है कि मुनि जी आपने सन्यासी बनकर इतने वर्षाे में या जोड़ा ? मैं कहता हॅू कि सन्यासी बनकर मैंने जोड़ने के नाम पर सब कुछ छोड़ा ही छोड़ा है और जोड़ने के नाम पर मानव से मानव को जोड़ा है। किसी संत के जीवन में इंसान से इंसान को जोड़ने की उपलधि से बड़ा कोई काम नहीं होता।

कमाल की जोड़ी और कोंधती बिजलियॉ

सागवाड़ा। मुनिश्री ने परिवार में मिलन सारिता और प्रेम भाव बनाये रखने के गुर बताएं, साथ ही चुटकियॉ लेकर धर्मसभा में मौजुद हजारों श्रद्धालुओं के चेहरो पर हंसी की रेखाएं भी खिंची। मुनिश्री ने कहा कि वर्तमान समय में पति-पत्नि के बीच मन-मुटाव और कलह के वाकये बढ़ रहे है। उन्होने परिहास में कहा कि लोग कहते है कि जोड़ी ऊपर वाला बनाता है और वह भी कमाल की जोड़ियॉ बनाता है। मैं कहता हॅू कि जब जोड़ी ऊपर वाला ही बनाता है तो बिजलियॉ तो गिरेगी ही। इन बिजलियों से डरो मत। मुनिश्री ने पुराने समय से चले आ रहे सात फेरो के सात वचनों को आउट ऑफ डेट करार देते हुए कहा कि 21वीं सदी में नये वचनों की पालना की आवश्यकता है। इन वचनों में केवल एक वचन का पालन वर-वधु कर ले तो दाम्पत्य जीवन सुखी हो जाए। मुनिश्री ने कहा कि फेरे लेते समय दुल्हा-दुल्हन एक दूसरे को ये वचन दे कि उनमें से कोई भी एक जब भी आग बनेगा तो दूसरा पानी बन जाएगा। जब भी एक कोई अंगारा बन जाए तो दूसरा जल धारा बनकर परिवार में शांति बनाये रखने में अपनी समझदारी निभाएगा।

सबसे सुखी कौन

सागवाड़ा। मुनिश्री ने कहा कई समझदार जिज्ञासु लोग मुझसे सवाल करते है। एक दिन एक जिज्ञासु ने मुझसे पूछा कि मुनिश्री इस संसार में सबसे सुखी कौन है। मैने उार दिया जिसे सोने के लिए नींद की गोली और जागने के लिए घड़ी के अलार्म की जरूरत नहीं होती, मेरी नजर में इस संसार का सबसे बड़ा सुखी व्यक्ति वहीं है। मुनिश्री ने कहा कि आज कर्ज लेकर झूठी शान दिखाने का नशा चल पडा है, यह ठीक नहीं है। कई विािय एजेन्सियॉ लॉन देने के लिए तैयार बैठी है लेकिन याद रखना किश्ते चुकाते-चुकाते एक दिन खुद चुक जाओगे। जो फर्ज चुकाएं लेकिन कभी झूठी शान के लिए लिया कर्ज न चुकाएं वह मेरी नजर में सबसे सुखी है। जो कठिन पल में मुस्कुराता है, अपना काम खुद कर लेता है, मंदिर तक नंगे पाव जाता है, मेरी नजर में वह सबसे बड़ा सुखी है। मुनिश्री ने कहा कि लाख घोड़ा गाड़ी, नौकर, चाकर, बंगले के  मालिक याें न हो, मंदिर हमेशा नंगे पांव पैदल जाया करो। वहां पर केडर नहीं देखा जाता। मंदिर में भगवान तुम्हारी सरलता और निर्मलता देखता है।

तो फिर यहां नौकर क्‍यों

सागवाड़ा। मुनिश्री ने यथा नाम तथा गुण की उक्ति चरितार्थ करते हुए कड़वे प्रवचन में जीवन की सेहत के लिए कड़वी बात प्रकट करते हुए कहा कि आज कल इंसान इतना एहसान फरामोश हो गया है कि वह मंदिर में पूजा करने और भगवान को याद करने के लिए भी नौकर रखने लगा है। मुनिश्री ने कहा कि पूरे देश में यात्रा करने के बाद भी उन्हें आज तक ऎसा कोई पुरूष नहीं मिला जो शादी करने के बाद पत्नि के सामने प्रेम प्रकट करने के लिए नौकर रखता हो। अरे ना समझ़ो, जब इस सांसारिक रस्म के लिए नौकर नहीं रख सकते तो भगवान के लिए नौकर क्‍यों रखते हो। मुनिश्री ने जीवन की सफलता और सदैव अस्तित्व का अहसास करते रहने के लिए तीन काम स्वयं करने के सुझाव दिये। उन्होने कहा कि घर के एक छोटे से कौने में ही सही रोजाना खुद जाडू लगाया करों, अपना तोलिया ही सही खुद धोया करो और माता-पिता, गुरू तथा ईश्वर की पूजा और सेवा भी खुद किया करो। इन कामो के लिए नौकर रखोगे तो जीवन में ईश्वर कृपा नहीं मिलेगी। मुनिश्री ने वर्तमान समय में वृद्धा आश्रम खुलने को दुर्भाग्यशाली बताया और कहा कि यह भारतीय संस्कृति के खिलाफ है।

तर्क ने किया बेड़ा गर्क

सागवाड़ा। मुनिश्री ने वर्तमान समय में अनावश्यक बातों पर तर्क करने की आदत पर चिंता जताई और कहा कि आज के इंसान के तर्क करने की आदत के कारण उसका बेड़ा गर्क हो रहा है। जहां तर्क है वहां नर्क है और जहां समर्पण है वहां स्वर्ग है। मुनिश्री ने अपनी बात को दोहराते हुए कहा कि जीवन में 90 प्रतिशत प्रश ऎेसे है जिनका जवाब देना जरूरी नहीं होता लेकिन आदमी है कि यों का इतना गुलाम हो गया है कि सामान्य बात पर भी यो की बारीश कर देता है। परिवार में तो सांस हो या बहू, पुत्र हो या पिता, भाभी हो या ननद, मॉ हो या बेटी हर कोई इस यों की गिरफ्त में है। मुनिश्री ने क्रोध पर अंकुश के लिए प्रेरित किया और कहा कि वर्तमान में इस देश में अगर कुछ धर्मनिरपेक्ष है तो वह केवल क्रोध है। यह क्रोध हर मजहब के आदमी पर हावी है। उन्होने कहा कि क्रोध से नन्हे शिशु को पिलाया गया दूध और घर में पति अथवा किसी भी सदस्य को क्रोध के साथ कराया गया भोजन जहर बन जाता है।







Saturday, May 19, 2012

सागवाड़ा में कड़वे प्रवचन माला शुरू



कोई जागे न जागे उसका मुकद्दर
मेरा धर्म जगाना है-राष्ट्र संत तरूण सागर


- पहले दिन खुद में बदलाव की नसीहत


सागवाड़ा 19 मई। कोई जागे न जागे यह उसका मुकद्दर है। मैं तो मनुष्य मात्र के जीवन और जीवन में परिवर्तन के लिए निकला हॅू। मेरा धर्म जगाना है। यह कहना है कि राष्ट्र संत तरूण सागर महाराज का। 
डूंगरपुर जिले के सागवाड़ा कस्बे में शनिवार से शुरू हुए मुनिश्री के कड़वे प्रवचनों के पहले दिन क्रांतिकारी राष्ट्रसंत ने स्वयं में बदलाव पर जोर दिया। उन्होने कहा ये परिवर्तन के क्षण है। इस बात के मुगालते में मत रहो कि दुनिया बदल जाएगी। सच तो यह है कि हमें ही बदलना होगा। हममें बदलाव आने पर सारी स्थिति अपने आप बदल जाएगी। उन्होने सोच और नजरिये के बदलाव पर जोर दिया और कहा कि नजर बदलती है तो नजारे अपने आप बदल जाते है। मुनि श्री ने कहा दुनिया के कहने की परवाह मत करों, दुनिया का तो काम ही कहना है।
मुनि श्री ने कहा कि सुनना सिखों। आज विडम्बना यह है हर कोई सुनाना चाहता है, सुनना कोई नहीं चाहता। जरूरी नहीं है कि हर प्रश्र का उत्तर दिया जाए। दुनिया में नब्बे प्रतिशत प्रश्र ऐसे है जिनका जवाब देना जरूरी नहीं होता। लेकिन हम है कि गैरवाजिब सवालों के जवाब देने में भी नहीं चुकते।

जब सत्संग से लौटो तो

सागवाड़ा। मुनि श्री ने सत्संग के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा कि सत्संग केवल शब्दों का आडम्बर नहीं है सत्संग से जीवन में परिवर्तन आना चाहिए। जीवन की सोच बदलनी चाहिए। उन्होने परिवार को हरिद्धार बनाने में सत्संग की भूमिका रेखांकित करते हुए कहा यदि सांस सत्संग से घर लौटे तो बहू को लगना चाहिए कि अम्माजी गंगाजी नहा के आई है। यदि बहुरानी सत्संग से घर लौटे और सांस किन्हीं कारणों से सत्संग में न आ पाई हो तो उसे लगना चाहिए कि बहुरानी संस्कारी हो गई है और उसमें बदलाव को अनुभव करके सांस के मुंह से बर्बस निकलना चाहिए, बहू मैंं तुझसे क्या कहॅू आईलवयू यही नहीं बेटे के मन में पिता के प्रति विचार बदलने चाहिए। सत्संग से लौटकर पुत्र के मन में अपने हाथ में तिजोरी की चाबी आने के भाव बदल जाने चाहिए। सत्संग का असली मर्म यही है कि श्रद्धालु श्रोता के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आना चाहिए। मुनि श्री ने कहा कि सत्संग से व्यक्ति के जीवन में साहस, सहनशीलता और सत्य के सदगुणों का  विकास होता है।

जिन्दा आदमी की निन्दा

सागवाड़ा। मुनिश्री ने जीवन में निन्दा के महत्व को विवेचित करते हुए कहा कि निन्दा जिन्दा होने का लक्षण है। आज तक संसार में किसी भी मुर्दा व्यक्ति की निन्दा नही हुई। निन्दा होने का अर्थ है व्यक्ति जिन्दा है इसलिए निन्दा की परवाह भी मत करों। मुनि श्री ने ईश्वर से अनुठी प्रार्थना करने की सिख देते हुए कहा कि भगवान की तारीफो में पुल बांधने की प्रार्थनाएं तो पूजा ग्रहो में की गई दीवारो से बाते है। असली प्रार्थना तो यह है कि साधक ईश्वर से कहे कि हे प्रभु मुझे इतनी ताकत देना कि मैं अपनी आलोचनाएं सह सकु।

बौने पन का अहसास

सागवाड़ा। मुनिश्री ने स्वयं के मूल्यांकन पर जोर देते हुए कहा कि इंसान को सदैव आत्मनिरीक्षण करते रहना चाहिए। भगवान ज्ञान के सागर है, करूणा के सागर है, दयानिधि है, परम शक्तिशाली है, सबको पार लगाने वाले है आदि कथन को जगजाहिर है। भगवान क्या है वो सबको पता है। अरे पगले तू क्या हैं इस बात का पता कर। मुनिश्री ने अनुठे दृष्टांत के साथ स्पष्ट किया कि हिमालय के सामने जाकर जब अपने बौने पन का अहसास हो जाए तो समझना कि हिमालय की यात्रा सार्थक हो गई।  इसलिए ताकतवर के सामने अपने अस्तित्व का भान हो जाए तभी समझना कि हमारी इबादत पूरी हो गई।

इससे बड़ा आरक्षण क्या होगा

सागवाड़ा। मुनिश्री ने कन्या भ्रुण हत्या जैसे ज्वलंत मुद्दे पर मार्मिक विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज समाज में हालात ऐसे है कि घर में बेटी पैदा हो तो सबको मुंह बिगडने लगता है। बेटा पैदा होने पर ऐसा नाचते है मानो उन्हे तारने वाला आ गया। उन्हे पता नहीं है कि यह तारने वाला नहीं मारने वाला है। मुनिश्री ने हर कही तीस प्रतिशत महिला आरक्षण की मांग की चर्चा करते हुए कहा कि वे नारी शक्ति के संवर्धन के पक्षधर है, लेकिन भारत के शाश्वत चिंतन में आरक्षण का सबसे बड़ा उदाहरण पेश कर रखा है। जब पराये घर से एक बेटी बहु बनकर घर में आती है, आते ही उस अंजान महिला को घर की तिजोरी की चाबी थमाकर उसे मालकिन बना देने की परम्परा आरक्षण का सबसे बड़ा उदाहरण है। मुनिश्री ने महिलाओं से मुखातिब होते हुए कहा कि बोलबाला तो आपका ही है, ताकत चाहिए तो इंसान देवी दुर्गा की शरण लेता है, धन के लिए लक्ष्मी की और बुद्धि के लिए सरस्वती की गुहार लगाता है। अब बचा क्या जो पुरूष ब्रह्मा, विष्णु, महेश के पास जाएगा। यही नहीं भारतीय शास्त्रों ने सीताराम, राधेश्याम की व्यवस्था करके नारी सम्मान को नई ऊचाईयॉ दी है। मुनिश्री ने कहा कि नारी शक्ति के कारण धर्म जिन्दा है।

प्रधानमंत्री कौन

सागवाड़ा। कड़वे प्रवचनो में व्यंग के साथ-साथ हास-परिहास गोल देने में समर्थ राष्ट्र संत तरूण सागर महाराज ने शनिवार को प्रवचन के पहले दिन राजनीति पर भी खूब प्रहार किये और अपनी चुटकियों से भरे पाण्डाल में ठहाके लगवाएं। मुनिश्री ने कहा नारी हर हाल में सब पर भारी है। इसी पर मुनिश्री ने कहा कि देश और दुनिया के किसी भी इंसान से पूछो कि भारत का प्रधानमंत्री कौन है तो जो जवाब मिलता है वह नारी की असली ताकत बताने वाला होता है। मुनिश्री ने संकतो में युपीए संयोजक एवं कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी की राजनीतिक ताकत का जिक्र करते हुए महिलाओं से कहा कि ताकत में वे पुरूषों से कम नहीं है।

आधे दु:ख उधार के

सागवाड़ा। मुनिश्री ने जीवन में सुख दु:ख की चर्चा करते हुए कहा कि वर्तमान में हर एक इंसान के जीवन में 50 प्रतिशत दु:ख उधार लिये हुए है ये उधार भी ज्यादातर पडौस से लिया हुआ है। मुनिश्री ने कहा पडौसी की प्रगति, उन्नति, समृद्धि आदि को देखकर मन में जो ईष्र्या भाव पैदा होते है वहीं दु:ख बन जाते है। मुनिश्री ने कहा कि अमेरिका में बिजली चली जाए तो व्यक्ति फ्यूज देखता है। ब्रिटेन में बिजली विभाग को शिकायत की जाती है लेकिन भारत में बिजली चली जाने पर आदमी पडौस में झाकता है। उसके वहां गई की नहीं। यदि पडौसी की बिजली भी गुल है तो मन में संतोष होने लगता है कि उसके वहां भी नहीं है। इस नजरिये के चलते जीवन में न सुखी हो पाओगे न प्रसन्न। मैं हर एक इंसान के चेहरे पर मुस्कान देखने का मकसद लेकर सन्यास में निकला हॅू। आपके चेहरे पर मुस्कान देखना ही मेरा लक्ष्य है। सहनशील बन जाओं, खुद में परिवर्तन के लिए तैयार हो जाओ और दिल बड़ा कर लो तब आपके चेहरे से मुस्कान कभी नदारद नहीं होगी।