ईष्र्या करने वालों को नहीं मिलता है ईश्वर-तरूण सागर
- कथनी करनी के भेद से बढ़़ी विषमताएं- दुनिया चलती है दोहरी नीति से
सागवाड़ा। क्रांतिकारी राष्ट्र
संत मुनिश्री तरूण सागर महाराज ने कहा है कि ईष्र्या करने वालो को कभी भी ईश्वर
नहीं मिलता। ईश्वर सदैव मन की निर्मलता और बाल सुलभ निष्ठलता से प्राप्त होता है।
उन्होने कहा कि ईष्र्या करनी ही है तो टाटा, बिरला, डालमिया से करों ताकि उनकी होड़ करते-करते उनसे आगे नहीं तो
उनकी बराबरी में पहुंच सको। ईष्र्या करनी ही है तो भगवान राम, कृष्ण, महावीर से करों ताकि राम नहीं
तो कम से कम हनुमान तो बन ही सको। सड़क छाप
से ईष्र्या करके या पाओगे।
से ईष्र्या करके या पाओगे।
मुनिश्री डूंगरपुर जिले के सागवाड़ा कस्बे में कड़वे प्रवचन माला के दूसरे दिन रविवार को हजारो श्रद्धालुओं की धर्मसभा में प्रवचन कर रहे थे। मुनिश्री ने संसार की खामियों और खूबियों पर विस्तार से प्रकाश डाला और कहा कि यह संसार दोगली नीति से चलता है, इसने अपनी दोहरी नीति अपना रखी है। मुनिश्री ने कहा कि कथनी करनी का भेद वर्तमान समय में सारी विसंगतियॉ और विषमताएं पैदा कर रही है। मुनिश्री ने कहा कि जीवन में कथनी और करनी का अंतर मिटाएं बिना जीवन की सार्थकता प्राप्त नहीं होगी।
ये मनहूस मिलावट
सागवाड़ा। मुनिश्री ने वर्तमान
युग को मिलावट भरा युग करार देते हुए कहा कि वर्तमान का भ्रष्टाचार और बेईमानी
मिलावट की देन है। उन्होने कहा कि पदार्थो की मिलावट से कही ज्यादा खतरनाक विचारों
की मिलावट है। मेरी नजर में पदार्थ की मिलावट से जीवन जितना बर्बाद नहीं होता उससे
कही ज्यादा बर्बादी विचारों की मिलावट से होती है। मुनिश्री ने कहा कि एक आदमी
बाजार से जहर लाकर उसे जीवन से निजात पाने की उम्मीद के साथ खाकर सो गया। दूसरे
दिन वह बडे आराम से उठा। अगले दिन वह मिठाई की दुकान से कुछ पेडे ले आया, दो चार पेडे खाएं और सो गया।
बेचारा आज तक नहीं उठा। ये हाल है आज के मिलावट भरे जमाने के। मुनिश्री ने कहा कि
पदार्थो की मिलावट एक बार तो चल जाए लेकिन
विचारो की मिलावट से जीवन में जो जहर घुलता है उसका कोई उपचार नहीं।
एक चेहरे पर कई चेहरे
सागवाड़ा। मुनिश्री ने कहा कि
आज के इंसान ने अपने चेहरे पर कई चेहरे लगा रखे है। एक चेहरा हो तो उसे पहचाने।
इसने तो प्याज के छिलके की तरह चेहरे पर चेहरा, उस पर फिर चेहरा और उस पर फिर चेहरा लगा रखा है। असली चेहरे
का पता ही नहीं चलता। मुनिश्री ने कहा कि आज के आदमी ने जिन्दगी जीने के लिए कसौटी
भी दोहरी अपना रखी है। अपने लिये कुछ और दूसरो के लिए कुछ और। अपना बेटा इंजीनियर
बन जाए तो उसकी मेहनत और योग्यता में कसीदे पढ़ने लगता है और पडौसी का बेटा
इंजीनियर बन जाए तो कहेगा घुस देकर बना होगा। यही नहीं खुद का दिवाला निकल जाए तो
आदमी कहता है कि भगवान की मर्जी और दूसरे का दिवाला निकले तो प्रतिक्रिया में कहता
है पाप का घड़ा एक दिन तो फुटना ही था। मुनिश्री ने कहा कि एक चेहरे की जिन्दगी
जीये बिना धर्माचरण नहीं हो सकता। आज आदमी का मंदिर की सीढ़ियों पर चेहरा कुछ और
होता है और मंदिर में कुछ और होता है। जो चेहरा मंदिर में रहेगा वहीं चेहरा दुकान
पर भी मिले तभी उद्धार होगा। मुनिश्री ने कहा कि यह मन बड़ा टेढ़ा है। मुख पर कुछ और
लगता है और मन में कुछ और रखता है। रे चपल मन की चर्चित कविता की पंक्तियों के
जरिए मुनिश्री ने नसीहत दी कि दुनिया को देख कर मंजिल तय मत करो, मंजिल तय करनी है तो संत की
जिन्दगी देखकर तय किया करों।
वक्तव्य का विरोध
सागवाड़ा। मुनिश्री ने दुनिया
गोल होने की वैज्ञानिक व्याख्या को रेखांकित करते हुए कहा कि माना कि यह दुनिया
गोल है लेकिन यह सच्ची बातों का तुरंत विरोध करने में भी नहीं चुकती। मुनिश्री ने
कहा कि आज से 24 साल पहले वे इसी
सागवाड़ा कस्बे में थे और 24
वर्षो में देश का भ्रमण कर पुनः सागवाड़ा लौटे है। कुछ वर्षो पहले उन्होने एक
वतव्य दिया था, जिस पर विरोध का भुचाल
सा आ गया था। मुनिश्री ने कहा कि उन्होने भगवान महावीर को मंदिरों और मंदिरो की
चारदीवारी से मुक्त कर चौराहे पर लाने का संकल्प लेकर एक वतव्य दिया था। इस वतव्य पर
जैन समाज के ही कई लोगो ने कड़ा विरोध किया था लेकिन मैं अपने इस वतव्य पर अडिग रहा
और आज इसी का परिणाम है कि 36 कौम एक जाजम पर बैठकर भगवान महावीर का संदेश सुनते है। कई
लोग मुझसे पूछते है कि मुनि जी आपने सन्यासी बनकर इतने वर्षाे में या जोड़ा ? मैं कहता हॅू कि सन्यासी बनकर
मैंने जोड़ने के नाम पर सब कुछ छोड़ा ही छोड़ा है और जोड़ने के नाम पर मानव से मानव को
जोड़ा है। किसी संत के जीवन में इंसान से इंसान को जोड़ने की उपलधि से बड़ा कोई काम
नहीं होता।
कमाल की जोड़ी और कोंधती बिजलियॉ
सागवाड़ा। मुनिश्री ने परिवार
में मिलन सारिता और प्रेम भाव बनाये रखने के गुर बताएं, साथ ही चुटकियॉ लेकर धर्मसभा
में मौजुद हजारों श्रद्धालुओं के चेहरो पर हंसी की रेखाएं भी खिंची। मुनिश्री ने
कहा कि वर्तमान समय में पति-पत्नि के बीच मन-मुटाव और कलह के वाकये बढ़ रहे है।
उन्होने परिहास में कहा कि लोग कहते है कि जोड़ी ऊपर वाला बनाता है और वह भी कमाल
की जोड़ियॉ बनाता है। मैं कहता हॅू कि जब जोड़ी ऊपर वाला ही बनाता है तो बिजलियॉ तो
गिरेगी ही। इन बिजलियों से डरो मत। मुनिश्री ने पुराने समय से चले आ रहे सात फेरो
के सात वचनों को आउट ऑफ डेट करार देते हुए कहा कि 21वीं सदी में नये वचनों की पालना की आवश्यकता है। इन
वचनों में केवल एक वचन का पालन वर-वधु कर ले तो दाम्पत्य जीवन सुखी हो जाए।
मुनिश्री ने कहा कि फेरे लेते समय दुल्हा-दुल्हन एक दूसरे को ये वचन दे कि उनमें
से कोई भी एक जब भी आग बनेगा तो दूसरा पानी बन जाएगा। जब भी एक कोई अंगारा बन जाए
तो दूसरा जल धारा बनकर परिवार में शांति बनाये रखने में अपनी समझदारी निभाएगा।
सबसे सुखी कौन
सागवाड़ा। मुनिश्री ने कहा कई
समझदार जिज्ञासु लोग मुझसे सवाल करते है। एक दिन एक जिज्ञासु ने मुझसे पूछा कि
मुनिश्री इस संसार में सबसे सुखी कौन है। मैने उार दिया जिसे सोने के लिए नींद की
गोली और जागने के लिए घड़ी के अलार्म की जरूरत नहीं होती, मेरी नजर में इस संसार का
सबसे बड़ा सुखी व्यक्ति वहीं है। मुनिश्री ने कहा कि आज कर्ज लेकर झूठी शान दिखाने
का नशा चल पडा है,
यह ठीक नहीं है। कई विािय एजेन्सियॉ लॉन देने के लिए तैयार बैठी है लेकिन याद
रखना किश्ते चुकाते-चुकाते एक दिन खुद चुक जाओगे। जो फर्ज चुकाएं लेकिन कभी झूठी
शान के लिए लिया कर्ज न चुकाएं वह मेरी नजर में सबसे सुखी है। जो कठिन पल में
मुस्कुराता है, अपना काम खुद कर लेता
है, मंदिर तक नंगे पाव
जाता है, मेरी नजर में वह सबसे
बड़ा सुखी है। मुनिश्री ने कहा कि लाख घोड़ा गाड़ी, नौकर, चाकर, बंगले के मालिक
याें न हो, मंदिर हमेशा नंगे पांव
पैदल जाया करो। वहां पर केडर नहीं देखा जाता। मंदिर में भगवान तुम्हारी सरलता और
निर्मलता देखता है।
तो फिर यहां नौकर क्यों
सागवाड़ा। मुनिश्री ने यथा नाम
तथा गुण की उक्ति चरितार्थ करते हुए कड़वे प्रवचन में जीवन की सेहत के लिए कड़वी बात
प्रकट करते हुए कहा कि आज कल इंसान इतना एहसान फरामोश हो गया है कि वह मंदिर में
पूजा करने और भगवान को याद करने के लिए भी नौकर रखने लगा है। मुनिश्री ने कहा कि
पूरे देश में यात्रा करने के बाद भी उन्हें आज तक ऎसा कोई पुरूष नहीं मिला जो शादी
करने के बाद पत्नि के सामने प्रेम प्रकट करने के लिए नौकर रखता हो। अरे ना समझ़ो, जब इस सांसारिक रस्म के लिए
नौकर नहीं रख सकते तो भगवान के लिए नौकर क्यों रखते हो। मुनिश्री ने जीवन की सफलता
और सदैव अस्तित्व का अहसास करते रहने के लिए तीन काम स्वयं करने के सुझाव दिये।
उन्होने कहा कि घर के एक छोटे से कौने में ही सही रोजाना खुद जाडू लगाया करों, अपना तोलिया ही सही खुद धोया
करो और माता-पिता,
गुरू तथा ईश्वर की पूजा और सेवा भी खुद किया करो। इन कामो के लिए नौकर रखोगे
तो जीवन में ईश्वर कृपा नहीं मिलेगी। मुनिश्री ने वर्तमान समय में वृद्धा आश्रम
खुलने को दुर्भाग्यशाली बताया और कहा कि यह भारतीय संस्कृति के खिलाफ है।
तर्क ने किया बेड़ा गर्क
सागवाड़ा। मुनिश्री ने वर्तमान
समय में अनावश्यक बातों पर तर्क करने की आदत पर चिंता जताई और कहा कि आज के इंसान
के तर्क करने की आदत के कारण उसका बेड़ा गर्क हो रहा है। जहां तर्क है वहां नर्क है
और जहां समर्पण है वहां स्वर्ग है। मुनिश्री ने अपनी बात को दोहराते हुए कहा कि
जीवन में 90 प्रतिशत प्रश ऎेसे है
जिनका जवाब देना जरूरी नहीं होता लेकिन आदमी है कि यों का इतना गुलाम हो गया है कि
सामान्य बात पर भी यो की बारीश कर देता है। परिवार में तो सांस हो या बहू, पुत्र हो या पिता, भाभी हो या ननद, मॉ हो या बेटी हर कोई इस यों की
गिरफ्त में है। मुनिश्री ने क्रोध पर अंकुश के लिए प्रेरित किया और कहा कि वर्तमान
में इस देश में अगर कुछ धर्मनिरपेक्ष है तो वह केवल क्रोध है। यह क्रोध हर मजहब के
आदमी पर हावी है। उन्होने कहा कि क्रोध से नन्हे शिशु को पिलाया गया दूध और घर में
पति अथवा किसी भी सदस्य को क्रोध के साथ कराया गया भोजन जहर बन जाता है।
No comments:
Post a Comment