Sunday, April 8, 2012

भक्ति के बिना जीवन निरर्थक- तरूण सागर



जैन चैत्यालय से विहार
      बांसवाड़ा 8 अप्रैल। राष्ट्र संत तरूण सागर महाराज ने कहा है कि  संत का सानिध्य मनुष्य को भक्ति, आस्था और श्रद्धा से युक्त जीवन जीने का अवसर देता है लेकिन  दुर्भाग्यशाली लोग इस अवसर पर लाभ नहीं उठा पाते। उन्होने कहा है कि भक्ति के बिना जीवन निरर्थक है।
      महाराज रविवार को गांधी मूर्ति स्थित जैन चैत्यालय से विहार कर मोहन कॉलोनी स्थित जैन मंदिर में दर्शन के बाद उदयपुर रोड़ स्थित अशोक वोरा के निवास गुरू सदन में श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। महाराज श्री ने कहा कि संत जहां से चलते है वहां सूना-सूना हो जाता है तथा जहां पहुंचते है वहां सोना-सोना हो जाता है। मुनि श्री ने कहा जिस श्रद्धालु के यहां संत का आगमन हो वह भाग्यशाली कहा जाता है। जिस श्रद्धालु को संत की सेवा का अवसर मिले वह अहोभाग्यशाली कहा जाता है। जिसे संत याद करें वह महाभाग्यशाली और जो संतो को याद करें वह सौभाग्यशाली माना जाता है लेकिन इन सबके बावजूद भी जिसके मन मस्तिष्क में भक्ति भाव पैदा न हो और सुधरने को तत्पर न रहें वह दुर्भाग्यशाली है।
      चैत्यालय से भव्य जुलुस और गाजे-बाजे के साथ महाराज श्री का विहार हुआ। शाम 6 बजे मोहन कॉलोनी स्थित जैन मंदिर में दर्शन किये तथा वहां से भव्य जुलुस उदयपुर रोड़ स्थित मोहन कॉलोनी जैन समाज के अध्यक्ष अशोक वोरा के निवास गुरू सदन पहुंचा। यहां वोरा परिवार व श्रद्धालुओं ने मुनि श्री की आरती उतारकर पधरावनी की। धर्मसभा में जैन समाज के महामंत्री डॉ. दिनेश जैन ने मुनि श्री के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला। जैन समाज के अध्यक्ष एवं गुरू सदन के अशोक जैन ने मुनि श्री के अपने निवास पर पधारने के लिए मुनि का आभार व्यक्त किया। उन्होेने कहा कि अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मुनि श्री का उनके निवास पर पधारना पूर्वजो के पुण्य प्रताप का परिणाम है। उन्होने कहा कि मुनि श्री का आना उनके जीवन में शबरी की कुटिया पर राम के आगमन जैसी खुशी और पुण्य देने वाला है। संघस्थ संगीतकार सुरेश वाडेकर ने मंगला चरण किया। मुनि श्री की मंगल आरती में उपस्थित श्रद्धालुओं ने दीप जलाकर महाराज श्री के आगमन की खुशियॉ मनाई।
      आनन्द यात्रा 6 बजे से
      बांसवाड़ा। जीवन को तनाव मुक्त बनाने तथा हास-परिहास के साथ प्रेरक प्रसंगो के जरिए जीवन को ज्ञान धारा से जोड़ने के उद्देश्य से भारत में तरूण सागर महाराज द्वारा शुरू की गई आनन्द यात्रा ऎसा आयोजन है जिसमें बच्चे और वृद्ध के बीच अंतर समाप्त हो जाता है। सभी उम्र के श्रद्धालु इस कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते है। गुरू सदन में निवास करने तक मुनि श्री के सानिध्य में प्रतिदिन शाम 6 बजे से आनन्द यात्रा कार्यक्रम होगा। इस आयोजन में श्रद्धालुओं और मुनि श्री के बीच संवाद का ऎसा सिलसिला चलता है जो ज्ञान भक्ति और श्रद्धा की त्रिवेणी में हर किसी को आप्लावित कर देता है।

Saturday, April 7, 2012

जल रंगोली में उकेरी हस्तियों में राष्ट्रसंत तरूण सागर महाराज



- जल के दिल पर क्रांतिकारी संत का जलवा

अपनी विलक्षण प्रवचन अभिव्यक्ति के जरिए विश्व के करोड़ो श्रद्धालुओं के दिल में श्रद्धा, आस्था और भक्ति के साथ स्थान बनाने वाले क्रांतिकारी राष्ट्र संत मुनि श्री तरूण सागर महाराज को जल ने भी अपने दिल में जगह दे दी है।
मध्यप्रदेश के देवास शहर में एक कला साधक शिक्षक राजकुमार चंदन ने अपने सहयोगियो के साथ जल में 20वीं सदी के 101 नामचीन हस्तियों के चित्र पानी पर रंगोली के रूप में उकेरे और अपना नाम लिम्का बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में दर्ज करा लिया है। उन्हें 101 चित्र पानी पर रंगोली में 25 घंटो में पूरे करने की चुनौती दी गई थी। उन्होने यह काम चुनौती वाले समय के विपरित 24 घंटे 34 मीनट में पूरा कर लिया।

101 हस्तियों में तरूण सागर का जलवा

पानी पर रंगोली ने भारत के जिन महापुरूषो और ख्यातनाम हस्तियों को उकेरा गया उनमें रंगोली के मध्य में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, नीचे के भाग में चन्द्रशेखर आजाद, पश्चिमी छोर पर लाला लाज पतराय तथा पूर्वी छोर पर राष्ट्रसंत तरूण सागर महाराज का चित्र शामिल है। अन्य हस्तियों में पण्डित जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, गुरू गोलवलकर, अबुल कलाम आजाद, भगतसिंह, सुभाषचन्द्र बोस, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, डॉ. राधा-कृष्णन के अलावा आध्यात्मिक हस्तियों में बोहरा समाज के धर्मगुरू सैयदना साहब, श्री श्री रविशंकर, योग गुरू स्वामी रामदेव भी शामिल है।
ऐसे उकेरी जाती है रंगोली
पानी में रंगोली बनाने के लिए सधे हुए हाथ और इस कला की लम्बे समय के तजूर्बे की आवश्यकता होती है। पानी के किनारो पर लकड़ी के बुरादे से प्राकृतिक रंग तैयार कर चित्रकारी के लिए प्रयुक्त रंगो व बांधे रखने के लिए फोम की बोर्डर बनाई जाती है ताकि रंग स्थिर रहे। बोर्डर के भीतर रंग भरे जाते है और अपनी पसन्द के किरदारो को उकेरा जाता है जो उनके चित्र के रूप में उभरकर मुकम्मिल छवि के रूप में उभरते है।

महाभारतकालीन कला है जल रंगोली

जल में रंगोली महाभारत समय की अदभूत कला है जिसे देवास के कला साधक शिक्षक राजकुमार चंदन ने पुर्नजीवित किया है। कहा जाता है कि राजसुय यज्ञ में कौरव और पाण्डव दोनो आमंत्रित किये गये थे। आमंत्रित राजे महाराजाओं के लिए सम्मान में रंगोली बनाई गई थी। वह रंगोली भी जल में ही थी, जिसे दुुर्योधन कालीन समझकर उस कुण्ड में गिर गया था। उसके गिरने पर द्रोपदी ने ठहाका लगाते हुए दुर्योधन पर अंधे का बेटा अंधा व्यंग बाण छोडक़र परोक्ष रूप से महाभारत के युद्ध के कारणों में व्यंग की चिंगारी फेंक दी थी। माना जाता है कि इस कला के लिए कोई प्रशिक्षण केन्द्र नहंी ओर न ही देश में इस तरह की कला का कोई साधक मौजुद है। राजकुमार चंदन देश में इस कला के एक अकेले विलक्षण कलाकार है।

Friday, April 6, 2012

पृथ्‍वीक्‍लब बना तपस्‍थली


मंत्र दीक्षा विधान में गुरूकृपा की बयार चली

बांसवाड़ा, 06,अप्रेल।

प्रख्यात क्रांतिकारी राष्ट्रसन्त तरूणसागर जी महाराज ने कहा है कि जीवन में जिसके गुरू नहीं जीवन उसका शुरू नहीं। मंत्र आध्यात्मिक विज्ञान है और इनका प्रभाव पृथ्वी से लेकर अंतरिक्ष तक व्याप्त और विद्यमान है। महाराज श्री शुक्रवार को शहर के पृथ्वीक्लब में विभिन्न जाति, धर्मो, वर्गो और समुदायों के मुनि भक्त श्रद्धालुओं को मन्त्र दीक्षा प्रदान करने के बाद मन्त्र महिमा तथा दीक्षा के महत्त्व पर प्रवचन कर रहे थे। मुनिश्री ने कहा मन्त्र जाप विधि पूर्वक होना चाहिए। दीक्षा के बाद नियमों का पालन करने पर ही मन्त्र फलित होते है। इस दौरान बांसवाड़ा जिले के विभिन्न गांवो कस्बो से आये मुनि भक्त श्रद्धालुओं परिवारों ने मुनिश्री से मन्त्र दीक्षा ग्रहण कर सात्विक जीवन जीने और जीवन में किसी भी प्रकार का व्यसन न रखने का संकल्प लिया। सांगीतिक प्रस्तुतियों के बीच मन्त्र दीक्षा कार्यक्रम लगभग पौन घण्टा जिसमें दीक्षार्थियों के साथ ही उपस्थित अन्य श्रद्धालुओं मन्त्र मुग्ध हो इस आध्यात्मिक आयोजन में पुण्य अर्जित करने में एकाग्रचित्त रहे।

दीक्षा का अर्थ अहर्निश सेवा - मुनि तरूणसागर 

कार्यक्रम में प्रवचन करते हुए मुनिश्री ने कहा दीक्षा का अर्थ केवल गुरू का सान्निध्य प्राप्त कर लेना नहीं है दीक्षा का मर्म दिन-रात सेवा में जुटे रहना है मुनिश्री ने कहा कि जिस गुरू से दीक्षा प्राप्त करे केवल उनके प्रति ही आदर रखना ही और उनकी सेवा में रत रहना सफल और पूर्ण साधक की पहचान नहीं है सच्चा साधक वह जो प्रत्येक मुनि के प्रति भक्ति भाव रखते हुए नगर आगमन पर उनकी वैयावृत्ति के साथ सेवा सुश्रूषा में उद्यत रहें। मुनिश्री ने कहा कि मन्त्र की महिमा निराली है शुद्ध भाव से जपने पर मन्त्र न केवल मनोरथ सिद्ध करते है बल्कि मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त करते है क्रान्तिकारी संत ने कहा कि विदेश जाने के लिए यात्री को पासपोर्ट की आवश्यकता होती है लेकिन उस यात्री के वस्त्र पर यदि चीटी सवार हो जाए तो उसके लिए पासपोर्ट नहीं चाहिए। गुरू और शिष्य के बीच भी परम पुरूषार्थ प्राप्ति में भी यही सिद्धान्त काम करता है। गुरू मोक्ष का अनुगामी है तो उसकी शरण में पहुंच कर शिष्य स्वत: ही मोक्ष का अधिकारी बन जाता है।

नजारा तपो भूमि जैसा 

आम तौर पर इण्डोर गेम्स तथा अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए प्रयुक्त होने वाला पृथ्वीक्लब शुक्रवार को अपने बदले हुए किरदार में नजर आया। सफेद धोती के परिधान में पुरूष श्रद्धालु तथा श्वेत परिधान में महिला श्रद्धालुओं की उपस्थिति एवं मन्त्र दीक्षा के लिए उनके सम्मुख रखी पूजन सामग्री के बाद जैसे ही मुनिश्री के मुखारविन्द से दीक्षा सम्बन्धित निर्देश स्वर लहरियां क्लब सभागार गूंजना शुरू हुई तब ऐसा लगा मानो पृथ्वीक्लब शहर के मध्य मनोरंजन का केन्द्र न होकर तपोभूमि बन गया हो।
उपस्थित हर उम्र का श्रद्धालु मन को अदभूत आनन्द देने वाले इस दृश्य में स्वयं को लीन करता महसूस हो रहा था। मुनिश्री के साधक भक्त ब्रम्हचारी सचिन भैया व सहयोगी ने मन्त्र दीक्षा कार्यक्रम के दौरान मुनिश्री को गुरू के रूप में विभिन्न प्रकार से जैन शास्त्र सम्बन्ध अध्र्य अर्पण का विधान सम्पन्न कराया। एक घण्टे तक क्लब सभागार स्वाहा के जयघोष से गूंजता रहा।


साबित किया अंगुली पर नचाना

गुरू के आदेश पर भक्त और शिष्य क्या कुछ नहीं कर सकता गुरू की अंगुली के इशारे पर भक्त को नाचना भी पड़ सकता है यह साबित हो गया शुक्रवार को उस समय जब गुरू मन्त्र दीक्षा विधि के दौरान अध्र्य अर्पण प्रक्रिया में दीक्षार्थी श्रद्धालुओं द्वारा नृत्य पूर्वक अंजली दी गई। इसके बाद मुनिश्री ने इस कार्यक्रम के अतिथियों को आदेशित किया कि सभी अतिथि भी नृत्य करेंगे।
गुरू का आदेश शिरोधार्य मानकर आयोजन के अतिथि एडवोकेट सुरेश जैन, तरूणक्रान्ति मंच के ट्रस्टी निर्दोष जैन, मुनि संघ सेवा समिति के अध्यक्ष सुरेश सिंघवी, उपाध्यक्ष अशोक जैन, महामंत्री महावीर बोहरा सहित अन्य अतिथियों ने मुनिश्री के सम्मुख ही भक्ति गीत पर नृत्य प्रस्तुतियां दी और भक्ति की मस्ती में खोकर खूब झूमे।


Thursday, April 5, 2012

जीवन को तमाशा नहीं, तीर्थ बनाइए-राष्ट्रसंत तरूण सागर



पढाया पाठ, खुलवाई गांठ
गुरूमंतर्् दीक्षा आज

-प्रकाश पंड्या
बांसवाड़ा, 5 अप्रेल। जीवन जीेने के दो तरीके है आप चाहे तो इसे तमाशा बना सकते है और आप चाहे तो तीर्थ, मरजी आपकी। मांसाहार और मदिरापान जैसे व्यसन को अपनाएंगे तो यह जीवन तमाशा ही नहीं नर्क भी बन जाएगा और यदि खान-पान की शुद्धता रखी तो यही जीवन तीर्थ भी बन सकता है। प्रख्यात राष्ट्रसंत क्रान्तिकारी मुनि तरूण सागर महाराज ने गुरूवार को बांसवाड़ा के ऎतिहासिक कुशलबाग मैदान में कडवे प्रवचन माला के विराम दिवस पर पाण्डाल में उपस्थित हजारों लोगों को जीवन की बुराइयां छोडकर सत् संकल्प और शुभ कार्य अपनाने का आह्वान किया। हर जाति वर्ग धर्म समुदाय के उपस्थित हजारों महिला पुरूष श्रद्धालुओं ने हाथ उपर उठाकर मुनि श्री को संकल्प व्यक्त किया कि वे जीवन में कभी मांसाहार और मदिरापान का सेवन नहीं करेंगे। कडवे प्रवचन माला के पांचवे दिन मुनि श्री ने अपने वीर रस से ओतप्रोत प्रवचन देने के अलावा हास परिहास मनोविनोद और मार्मिक संस्मरण सांझा करते हुए हर आयु वर्ग के श्रद्धालुओं को दायित्व बोध कराया। मुनि श्री के सान्निध्य में गुरू मंतर्् दीक्षा का भव्य कार्यक्रम शुक्रवार प्रातः साढे आठ बजे कुशलबाग मैदान में होगा।

तो जहर क्यों नहीं?

प्रवचन माला के विराम दिवस पर मुनि श्री उदबोधन व्यसन मुक्त जीवन और खानपान की शुद्धता पर क्रेन्दि्रत रहा। उन्होंने कहा जीवन में एक बुराई तो उसके पीछे पीछे बीसियों बुराइयां स्वतः चली आती है। उन्होंने कहा कि मद्यपान करने वाले कुछ युवाओं से जब उन्होंने शराब का सेवन छोडने की नसीहत दी तो युवाओं का तर्क था यह भी एक अनुभव है लेने में क्या आपत्ति है इस पर मुनि श्री ने युवाओं से कहा तो फिर सेवन का अनुभव क्यों नहीं लेते इसका भी तो अनुभव लीजिए। युवाओं ने कहा नहीं मुनिवर जहर से तो हमारा जीवन ही समाप्त हो जाएगा। इस पर मुनि श्री ने कहा मद्यपान करने वाली पीढी ना समझ है उसे नहीं पता मद्यपान से जीवन जीते जी नर्क हो जाता है। उन्होंने कहा यह जीवन परोपकार और परमात्मा की उपासना के लिए मिला है। मुनि श्री ने कहा जिसका खानपान शुद्ध नहीं उसका खानदान भी शुद्ध नहीं होता। विचारों की शुद्धता आहार की शुद्धता पर निर्भर करती है। मुनि श्री ने कहा प्रत्येक मॉ बाप की जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों को बुरी नजर से ही नहीं बुरी संगत से भी बचाए क्योकि बुरी संगत से आपका बच्चा बुरी पंगत में बैठने लगेंगा और बुरी पंगत से उसकी जिंदगी की खूबसुरत रंगत खत्म हो जाएगी।

मुकम्मिल दस्तखत करेंगे पीएम

मुनि श्री ने अपने साधुता और सन्यस्थ जीवन के चार दुर्लभ सपने पूरे होने के बाद चार नए सपनों का जिक्र किया और कहा कि लाल किले से राष्ट्र को संबोधन, भारतीय सेना दल के बीच प्रवचन, विधानसभा और लोकसभा में उदबोधन के बाद भगवान महावीर को जैन समाज के मंदिरों से मुक्त कराकर विश्व के ह्रदय पटल पर स्थापित करने के चार सपने पूरे होने के बाद उन्होंने चार और सपने देखे है उनमें से एक है देश के 10 लाख लोगों को मांसाहार और मदिरापान के व्यसन से मुक्त करना। पहले संकल्प पतर्् पर हस्ताक्षर मध्यप्रदेश के मुख्यमंतर््ी शिवराजसिंह चौहान ने किए है और इस महत संकल्प का दस लाखवां संकल्प पतर्् तत्कालिन प्रधानमं़तर््ी के दस्तखत के साथ मुकम्मिल होगा। गुरूवार को मध्यप्रदेश से आए मुस्लिम समुदाय के मुनि भक्त ने भी मांसाहार और मदिरापान त्यागने का संकल्प पतर्् भरा।

रक्तदान यानी कुए का पानी


मुनि श्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को जीते जी रक्तदान करे और मरणोपरान्त नेतर््दान के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि रक्तदान से बडा कोई पुण्य नहीं। उन्होंने कहा कि जो लोग इस पूर्वाग्रही मानसिकता में जीते है कि रक्त देने से रक्त का टोटा पड जाएगा उन्हें कहना चाहुंगा कि जीते जी जरूरत मंद को रक्तदान करना कुएं द्वारा पीने के लिए पानी दिए जाने के समान है। बाल्टी भर पानी निकालने के बाद कुएं में फिर उतनी ही मात्र में पानी की आपूर्ति हो जाती है शरीर में रक्तदान के बाद रक्त की पूर्ति भी उसी प्रकार हो जाती है।

कुत्ता कल्चर को कोसा

मुनि श्री ने कहा एक जमाना था जब बेटी की सगाई के लिए मॉ बाप लडके के घर जाते थे तो उसकी हैसीयत का पता गौधन से लगाते थे जितना गौधन उतनी ही समृद्धि लेकिन आज तो कुत्ता कलचर बढ रहा है। विश्व सुन्दरी जैसा खिताब पाने वाली हिरोइनों को विदेशी नस्ल के कुत्त के पिल्ले को गोद में उठाए जब चुमते हुए देखकर वर्तमान की युवा पीढी मन में सोचती है काश अगले जनम में कुत्ते का पिल्ला बनने मिल जाए। मुनि श्री ने आहवान किया कि आज भी अहिंसा प्रधान भारत देश में सूर्योदय होने से पूर्व 40 हजार गाए कत्ल खानों में अकाल मौत की भेट चढ चुकी होती है। उन्होंने कहा कत्लखाने जाती एक गाय को बचाना वैष्णों देवी और सम्मेदशिखर जी की यात्र के पुण्य से कम नहीें है। चमडे की वस्तुओं का इस्तेमाल करना भी हिंसा का समर्थन करना है। मुनि श्री ने कहा कि उनका एक ओर बहुत बडा सपना पूरा हुआ है जिसमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के 60 लाख सदस्यों ने चमडे के बेल्ट और जूते न पहनने का संकल्प लिया है। दो ओर सपने चर्च और मस्जिद में प्रवचन तथा नेपाल तक भारतीय संस्कृति और दर्शन का शंखनाद संजोए हुए है जो गुरू और भगवान महावीर की कृपा से शीघ्र पूरे हो जाएंगे।

कहो ना प्यार है...

मुनि श्री ने सहिष्णुता के अभाव में परिवार के घनिष्ठतम सदस्य और रिश्तेदारों के बीच बढते कलह और इस कलह से बढती दूरियों को भारतीय संस्कृति और दर्शन के विपरीत बताया और पति पत्नी के बीच मन मुटाव का रोचक संस्मरण सांझा करते हुए नई पीढी की समझ का मनोविनोपूर्ण दृष्टान्त दिया। मुनि श्री ने कहा एक दिन पति पत्नी के बीच विवाद के बाद बोलचाल बंद हो गई पति को अगले दिन सुबह 6 बजे की गाडी से अन्य शहर की यात्र करनी थी पत्नी से संवाद बंद था इसलिए पती ने रात को सोते समय एक परची पर लिखा मुझे कल 6 बजे की गाडी से उदयपुर जाना है पांच बजे जगा देना। दूसरे दिन सुबह की 8 बज गई पति आग बबुला हो कर उठा इससे पहले कि पत्नी को खरी खोटी सुनाए उसकी नजर सिरहाने पत्नी द्वारा लिखी पर्ची पर पडी पर्ची पर लिखा था सुबह की पांच बज गई है उठ जाइए। आजकल की पत्नी के ये तो हाल है और बाहर ढिढोरा पीटते है कहो ना प्यार है। भारत पाकिस्तान जैसे दोनो के बीच हालात है और कहते है हम साथ साथ है। मुनि श्री ने मार्मिक संदेश संप्रेषित करते हुए कहा लड लेना, झगड लेना, पीट देना, पीट जाना लेकिन कभी भी बालचाल बंद मत करना क्योकि बोलचाल बंद हो जाने स सुलह के द्वार बंद हो जाते है। मुनि श्री ने कहा जैन धर्म में 6 माह से अधिक का बैर दुर्गति का सूचक माना गया है। काव्यात्मक अंदाज में मुनि श्री ने सीख देते हुए कहा कितना अच्छा होता हर आदमी बच्चा होता क्योकि बच्चा दस मिनट से ज्यादा बैर नहीें पालता।

बदल गए है अर्जुन-श्रेणिक के सवाल

मुनि श्री ने बदलते युग और परिवर्तित समय के बीच स्वयं में बदलाव पर रोज की तरह प्रवचन विराम दिवस पर भी बल दिया और कहा कि मैं बदला लेने नहीं तुम्हें बदलने आया हूं मैं घर घर जाने नहीं तुम्हारे दिलों में घर करने आया हूं। उन्होंने सावधान किया और कहा कि अर्जुन के पुराने समय के सवाल में कृष्ण के जवाब गीता बन गए श्रेणिक के सवालों पर भगवान महावीर के जवाब आगम बन गए लेकिन आज दोनों के सवाल बदल गए है अर्जुन के सवाल पहले जैसे नहीं रहे श्रेणिक के प्रश्न भी पहले जैसे नहीं रहे इसलिए कृष्ण और महावीर को भी जवाब बदलने होंगे। मुनि श्री ने इस प्रसंग पर मुल्ला नसरूददीन का हास परिहास से भरा किस्सा सुनाया तो श्रद्धालुओं से खचाखच भरा पाण्डाल हंसी के फव्वारों में हंसी की बारिश में भीग गया।

पुरूषार्थ, प्रार्थना और प्रतीक्षा

मुनि श्री ने भारतीय अध्यात्म का कालजेयी दर्शन प्रस्तुत करते हुए कहा जीवन में सही तरीके से जीवनयापन के लिए भारत का अध्यात्म तीन सूतर्् प्रतिपादित करता है पहला पुरूषार्थ दूसरा प्रार्थना और तीसरा प्रतीक्षा आज के इंसान को पुरूषार्थ के अगले ही पल फल चाहिए। मंदिर की सीढीया उतरा नहीं कि दाये बांये झाककर परिणाम तलाशने लग जाते हो। पुरूषार्थ के बाद प्रार्थना और उसके बाद प्रर्तीक्षा करना ही इंसान का धर्म है। फल के बारे में सोचना मनुष्य के अधिकार क्षेतर्् में नहीं है किसान का काम बीज वपन करना है अंकुरण की शक्ति किसी ओर के हाथ में है।

रसोई बनाम किचन

किसी जमाने में घर में रसोई हुआ करती थी आज इंसान ने कीचन बना लिया है। जहां रस बरसे वह रसोई और जहां कीच कीच हो वह कीचन। कीचन की और परिवार की कीच कीच हमारी ही उपज है। चौका शब्द की विवेचना करते हुए मुनि श्री कहा कितना खाए, कैसे खाए, कब खाए और क्यो खाए इन चार ककारो का ध्यान रखना ही चौका कहलाता है आज के इंसान ने खान पान की शुद्धता और खानपान के शास्तर्् सम्मत संविधान को भूला दिया है इसीलिए अन्न से उत्पन्न होने वाले विचार भी दुषित पैदा हो रहे है। मुनि श्री ने कहा कि महिला शक्ति, धर के पुरूष सदस्यों को आत्मीयता पूर्वक भोजन तो कराए लेकिन परिवार के ही किसी सदस्य के खिलाफ भडकाए नहीं। नारी शक्ति का दायित्व है वह अपने बोल से परिवार में बाग लगाए आग नहीं।

वागड भी मेट्रो से कम नहीं-खोडणिया

 जैन समाज सागवाडा के पदाधिकारी दिनेश खोडणिया ने कडवे प्रवचन माला के विराम दिवस पर मुख्य अतिथि पद से विचार व्यक्त किए और मुनि श्री से सम्पूर्ण वागडवासियों की तरफ से वागड के किसी भी शहर कस्बे में चातुर्मास की प्रार्थना के साथ सागवाडा जैन समाज प्रतिनिधियों की मौजूदगी में श्रीफल भेट किया। खोडणिया ने मुनि के मन को छू जानेवाले वक्तव्य में कहा कि मुनि श्री भारत का हर नागरिक कहता है मुनि श्री केवल मेट्रो सीटी में चातुर्मास करते है उन्होंने दशाधिक तर्क और प्रमाण प्रस्तुत करते हुए सिद्ध किया कि हमारा वागड भी मेट्रो से कम नहीं है खोडणिया के भक्ति पूर्ण प्रस्ताव और प्रार्थना पर मुनि श्री के चेहरे पर मुस्कान दौड गई। प्रवचन माला के विराम दिवस पर पूर्व चिकित्सा राज्यमंतर््ी भवानी जोशी सागवाडा जैन समाज के अध्यक्ष दिलीप सेठ, डा. अजीत कोठारी विशि6ट अतिथि थे। आरंभ में मुनि संघ सेवा समिति के अध्यक्ष सुरेश सिंधवी परिवार ने मुनि श्री के पद प्रक्षालन गुरू पूजन, आरती और शास्तर्् भेट का लाभार्थी बनकर पुण्य अर्जित किया। इस आयोजन में उल्लेखनीय सेवाओं के लिए मुनि संघ सेवा समिति के महामंतर््ी महावीर बोहरा का सम्मान किया गया।

हमे जो मिला है दिया है उसी ने

करम क्या गजब का किया है तुम्ही ने, किस्म से ज्यादा दिया है तुम्ही ने, ले हाथों में अमृत हम ये सोचते है हमारा जहर भी तो पीया है तुम्ही ने ।क्या ये क्या वो गिनाए हम क्या क्या, हम जो मिला है दिया है तुम्ही ने काव्य पंक्तियों के साथ प्रदेशवासियों, वागडवासियों व बांसवाड़ा के श्रद्धालुओं की ओर से मुनि श्री के सम्मान में लेखक प्रकाश पण्डया ने अपनी आदरांजलि प्रस्तुत की। उन्होंने भगवान श्री राम के शबरी की कुटिया तक पहुंचने और राष्ट्रसंत मुनि श्री तरूण सागर तथा वनवासी क्षेतर्् वागड के श्रद्धालुओं के बीच  गिरि और सागर का अटूट रिश्ता होने की बात कही तो पाण्डाल मुनि श्री के सम्मान में करतल ध्वनि से गूंज उठा।आध्यात्मिक लेखन एवं पतर््कारिता में उल्लेखनीय योगदान के लिए प्रका8ा पंड्या को मुनि श्री नेआ8ीर्वाद दिया तथा मुनि संघ सेवा समिति की ओर से बहुमान किया गया।










Wednesday, April 4, 2012

अहिंसा महाकुंभ प्रणेता के मुख से छलके अमृत बिन्दु कडवे प्रवचन माला का विराम दिवस आज


बांसवाड़ा, 4 अप्रेल।
अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत जैसे कालजेयी सिद्धान्तों के जन्मदाता भगवान महावीर स्वामी की जन्म जयंती पर बांसवाड़ा के ऐतिहासिक कुशलबाग मैदान में राष्ट्रसंत क्रान्तिकारी मुनि तरूण सागर महाराज के कडवे प्रवचन माला के चौथे दिन अहिंसा महाकुंभ के प्रणेता संत के मुख से अमृत बिन्दुओं की बरसात होती रही। हजारों श्रद्धालु इस अमृत वर्षा में जी भर कर भीगते हुए जीवन कल्याण की राह तलाशते रहे। मुनि श्री के मुखारविन्द से बडे महत्व का प्रवचन सुनने के लिए चौथे दिन भी तीन चौथाई कुशलबाग मैदान में बना पाण्डाल एक बार फिर छोटा पड गया। प्रवचन माला के चौथे दिन मुनी श्री के मुखारविन्द से छलके अमृत बिन्दु संकलित करने और उनसे जीवन धन्य बनाने की होड में आम और खास श्रद्धालू मुनिवर का अनन्य अनुयायी बनकर समय की रेत पर उसे टटोलता रहा।
 -अहिंसा अपरिग्रह और अनेकांत का सिद्धान्त ही धरती पर स्वर्ग के द्वार खोल सकता है। भगवान महावीर स्वामी ने निग्र्रन्थ जीवन सू़त्र का प्रतिपादन किया है। इसी को आत्मसात कर विश्व में प्रेम भाईचारा और शांति की स्थापना हो सकती है। -महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा के बुते विदेशी हुकुमत से हमे आजादी दिलाई। लेकिन 500 सौ की नोट को आगे पीछे और उलट पुलट देखकर मन में आता है कि हैं बापु जीवन भर तुम बैठे लंगोट में आज तुम्ही बैठे हो पांच सौ के नोट में।
-दुनिया में आज अमृत की मात्रा बहुत कम हो गई है इसलिए कडवे घुट पीने की आदत डालो मैं पूरे देष में घुमा हूं मुझे आज तक कोई दुकान ऐसी नहीं मिली जहां अमृत बिकता हो अमृत तो संतों की वाणी में टपका करता है। -हठाग्रही, कदाग्रही, विचारों के दूराग्रही मन बनिये। विचारो का दूराग्रह ही संघर्ष का सबसे बड़ा कारण है। -भगवान महावीर ने कहा है कुछ पाना है तो कुछ छोडो, कुछ कुछ पाने के लिए कुछ कुछ छोडो, बहुत कुछ पाने के लिए बहुत कुछ और सब कुछ पाने के लिए सब कुछ छोडो। -अच्छाई और सच्चाई को विनम्रता से स्वीकार करो जरूरी नहीं कि सत्य केवल अपने ही पास हो। यह प्रतिपक्षी के पास भी हो सकता है। -संयुक्त राष्ट्रसंघ के जब विश्व के देश निशस्त्रीकरण और विश्व शंाति की बात कर रहे होते है या फिर दो पडौसी देश आपसी भाईचारे के लिए मेज पर आमने सामने जुटते है तब भी मुझे मेरा महावीर और भगवान महावीर के सिद्धान्त साकार होते दिखाई पडते है। -हर मजहब का हर शख्स अपने धर्माधिकारी और मजहब के उसुलों तथा सिद्धान्तों की प्रशंसा तो करता है उसे पसन्द नहीं करता है। बहु चालाक है आज का आदमी। उसे पता है प्रशंसा में दो तोले का कोई उपकरण चाहिए जबकि पसन्द करने के लिए दो मन का शरीर हिलाना पडता है।
-लोग मुझे पूछते है मुनि श्री पुराने जमाने में तो साधु और मुनि जंगल में रहते थे आप शहर में क्यों आते हो? मैं कहता हूं उस जमाने में जंगल में शेर, भालू, कुत्ते, रीछ जैसे जानवर हुआ करते थे। गुफा में बैठकर साधु और मुनि अपनी तपस्या से निर्जरा कर लिया करते थे अब जंगल तो समाप्त हो गए वही शेर, भालु और कुत्ते जंगल छोडक़र शहर में आ गए तो हम भी शहर में आ गए। -जिन्दगी का रिमोट अपने हाथ में रखिए प्रतिपक्षी की किसी भी प्रतिक्रिया पर विचलित मत होइए। दुनिया का तो काम ही कुछ न कुछ कहना है। जिन्दगी का रिमोट यदि किसी ओर के हाथ में है तो जीवन बरबाद समझो। -घर में समता, सहिष्णुता, क्षमा और शांति के जल की हमेशा व्यवस्था करके रखिए जाने कब शाट सर्किट हो जाए और आग लग जाए क्योकि पडौसी तो तुम्हारा पेट्रोल लेकर बैठा है जैसे भारत का पडौसी बैठा रहता है। -सहनशीलता ही अमृत है, मुझे बडा दुख होता है जब आज 6 साल का बच्चा अपने मॉ बाप से कहता है मुझसे बात मत करो मेरा मुड ठीक नहीं है। -जीवन की सफलता के लिए दिमाग को ठंडा, जेब गर्म, आंखों में रहम और जुबान पर शुगर की फैक्ट्री रखा करो । आज का ईंसान घर और दफतर और गाडी में तो ए सी में रहता है लेकिन दिमाग में हिटर लगा रखा है। -संसार चक्रवर्ती की पूजा नहीं करता वह तो त्यागियों की पूजा करता है चक्रवर्ती राजा दशरथ पूजा कर आशीर्वाद लेने कुटिया में रहने वाले ऋषि वशिष्ठ के पास जाया करते थे। कडवे प्रवचन माला का विराम दिवस आज तो बिजलियां तो गिरेंगी ही मुनि श्री ने चौथे दिन के प्रवचन में भी वीर रस की शैली में हास परिहास और मनोविनोद का अदभूत समन्वय बैठाते हुए हजारों श्रद्धालुओं से खचाखच भरे पाण्डाल में मुस्कान, भक्ति और सीख की त्रिवेणी प्रवाहित की। लौकिक प्रसंग ने मुनि श्री ने कहा लोग कहते है रिश्ते आसमान में तय होते है पति पत्नी का किस्सा उदृत करते हुए मुनि श्री ने कहा कि जब रिश्ते आसमान में ही तय होते है तो फिर बिजलियां तो गिरेंगी ही पति पत्नी के बीच कलह को लेकर आश्चर्य क्यों? लेकिन यह कलह मिटाने की एक कुंजी है वह है मौन बस सहनशील रहो। क्रोध ही धर्म निरपेक्ष मुनि श्री ने अत्यन्त मार्मिक और चिन्तन शील लोगों के लिए सोच के महासमुद्र में एक ऐसा विचार छोडा जिसकी थाह पाने श्रद्धालु श्रोता गहराई तक पेठते रहे मुनि श्री ने कहा आज कोई भी मजहब हो अधिकांश व्यक्ति किसी छोटीसी बात को लेकर क्रोध की अग्नि में भडक उठता है। हिन्दू हो, मुसलमान हो, सिक्ख हो, ईसाई हो, जैनी हो कोई भी मजहब का व्यक्ति हो क्रोध उसके सिर पर चौबीस घंटे मंडराता रहता है। इस देश में ओर कुछ धर्म निरपेक्ष हो न हो क्रोध धर्म निरपेक्ष है। उन्होंने क्रोध पर नियन्त्रण को घोर तपस्या की संज्ञा दी और कहा कि अपमान के घुट पीना और क्रोध को बर्दाश्त कर लेना तपस्या से कम नहीं। एक गृहस्थ की सबसे बडी तपस्या क्रोध पर काबु करना है। तराजू का सूत्र मुनि श्री ने कहा जीवन में सफलता के लिए तराजू का उसूल अपनाओं। तराजू के जिस पलडे में कुछ रखा होता है वह भारी रहता है। जिसके पास कुछ नहीं रहता वह उपर की ओर उठा रहता है जीवन में भी यही सिद्धान्त काम करता है। जिसने संग्रहित कर रखा है वह जमीन पर पडा है जिसने सबकुछ छोड दिया और खाली है वह उपर उठा रहता है। इसलिए केवल संग्रहित मत करो। भगवान महावीर, राम, बुद्ध सबने कहा छोडो, छोडो, छोडो लेकिन आज का इंसान कहता है जोडो, जोडो, जोडो।

वागड विश्व में सबसे आगे-तोषनीवाल प्रख्यात उद्योगपति एवं बांसवाड़ा सिन्टेक्स मिल के सीएमडी आर एल तोषनीवाल प्रवचनमाला के चौथे दिन मुख्य अतिथि के रूप में सत्संग कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। उन्होंने मुनि श्री को श्रीफल भेटकेर आशीवार्द लिया अपने संक्षिप्त उदबोधन में तोषनीवाल ने कहा कि वागड काभविष्य उज्ज्वल है वर्तमान में यहां से 1500 करोड रूपए के उत्पाद का निर्यात होता है वागड विश्व में सबसे आगे होगा। उन्होंने इस अभिलाषा की पूर्णता के लिए मुनि श्री से आशीर्वाद की प्रार्थना की । इस अवसर पर जिला परिषद के अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी विजयसिंह नाहटा विशिष्ट अतिथि थे। चौथे दिन मंच पर साम्प्रदायिक सदभाव की झलक भी देखने को मिली। मशहूर सूफी शायर मरहुम बिस्मिल नक्षबंदी द्वारा स्थापित खान ख्वाह फैजाने रेहमत कमेटी के मेम्बरान तथा हिन्दु रक्षक सेना के प्रतिनिधि मुनि श्री का आशीर्वाद लेने कुशलबाग मैदान पहुंचे। फैजाने रेहमत कमेटी के पदाधिकारियों ने अनूठी कलाकृति के रूप में ओम लिखी हुई अदभूत शील्प से सजी तस्वीर मुनि श्री को भेट की। इस अवसर पर जैन संगठन के प्रदेश मंत्री विकेश मेहता ने भी विचार व्यक्त किए। जाने माने व्यवसायी अशोक बोहरा व परिवार ने मुनि श्री का पग प्रक्षालन, शास्त्र भेट, गुरू पूजन व आरती का लाभ लेकर पुण्य अर्जित किया। संलेखना तीर्थ में योगदान करने वाले परम संरक्षक अशोक बोहरा तथा संरक्षक सुरेश सिंघवी का बहुमान किया गया। कार्यक्रम का संचालन ब्रहृमचारी सचिन भैया ने किया। गुरूवार को कडवे प्रवचन माला का विराम दिवस होगा। देश में दे बांसवाड़ा की मिसाल- हर्ष कोठारी जाने माने उद्यमी एवं ओम शिरडी सांई बाबा दीनबन्धु ट्रस्ट के अध्यक्ष एडवोकेट हर्ष कोठारी मुनि श्री के प्रवचनों से अभिभूत होकर कृतज्ञ भाव से कहते है मुनि श्री के आगमन से वागड का चप्पा चप्पा और जर्रा जर्रा उपकृत हो गया। वे कहते है मुनि श्री से प्रार्थना है किे वे देश के जिस किसी कौने में जाए वे बांसवाड़ा की कलह मुक्त संयुक्त परिवार व्यवस्था, यहां के लोगों की निश्छलता और बाल सुलभ भक्ति की मिसाल का उदाहरण जरूर सुनाए। उनके पधारने से बांसवाड़ा की भक्ति धरा और वेगवान हो गई है। यहां के लोगों के मन में आस्था की हिलोर तेज हो गई है और भविष्य दसों दिशाओं से उज्ज्वल नजर आने लगा है।

Tuesday, April 3, 2012

जहां तर्क वहां नर्क, जहां समर्पण वहां स्वर्ग -राष्ट्रसंत तरूण सागर

प्रकाश पण्‍ड़या
बांसवाड़ा, 3 अप्रेल। इस युग में क्यों के सर्वाधिक प्रयोग ने संघर्ष पैदा कर दिया है। आदमी इतना तार्किक हो गया है कि चूप रहने के बजाय वह क्यो की बौछार लगा देता है। जीवन का सच यह है कि जहां तर्क है वहां नर्क है और जहां समर्पण है वहां स्वर्ग है। यह कहना है राष्ट्रसंत मुनि श्री तरूण सागर जी महाराज का। बांसवाड़ा के एतिहासिक कुशलबाग मैदान में कड़वे प्रवचन माला के तीसरे दिन मुनि श्री ने उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए जीवन में समस्याओं के अम्बार से निजात के सूतर्् बताए साथ ही भाग्यवाद को छोड़कर पुरूषार्थ का दामन थामने के लिए प्रेरित किया। मुनि श्री ने कहा आज हर प्रकार के इंसान के सामने समस्याएं है। अमीर के सामने क्या खाए कि भूख लगे और गरीब के सामने भूख लगे तो क्या खाए कि समस्या है। युवा के सामने क्या करे समय नहीं मिलता और वृद्ध के सामने क्या करे कि समय नहीं कटता की समस्या है। समृद्ध के सामने क्या क्या पहने कि समस्या है तो विपन्न के सामने क्या पहने की समस्या है। मुनि श्री ने कहा कि समस्याओं का एक ही समाधान है और वह भगवान महावीर स्वामी ने तपस्या के रूप में संसार के सामने रखा है। सन्यास ही नहीं गृहस्थ भी तपोभूमि हो सकता है। किसी छोटी सी बात पर क्रोध आ जाए और उस पर नियन्तर््ण भी तपस्या है। मुनि श्री ने आह्वान किया कि जीवन में भाग्यवादी बने रहना पर्याप्त नहीं है। सदैव पुरूषार्थी बने रहना जीवन का मकसद होना चाहिए। मुनि श्री ने भगवान महावीर के उपदेश और संदेश जीवन में आत्मसात करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि भगवान राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर सभी राजपुतर्् थे लेकिन जीवन में त्याग के कारण आज वे भगवत पद प्राप्त कर पूजनीय है। जीवन में विनम्र बने रहिये। विनम्रता जिंदा होने की पहचान है। मुनि श्री ने कहा कि सच्चाई दो प्रकार की है एक व्यावहारिक व दूसरी वास्तविक। व्यावहारिक सच्चाई की गफलत में आज का मानव वास्तविक सच्चाई को भुला बैठा है। इसी कारण मनु8य का जीवन वरदान होने के स्थान पर अभिशाप होता चला जा रहा है।

छोड़ दो

म्ुानि श्री ने जीवन में अर्जन और विसर्जन की महिमा में अन्तर प्रतिपादित करते हुए कहा कि संसार ने उसी की पूजा की है जिसने समर्पण किया है। 
विसर्जन को भी जीवन में अपनाओं। अर्जन के साथ विसर्जन पर विश्वास रखों कही ऎसा न हो जाए कि अर्जन करते करते ही विसर्जन हो जाए। गणितीय अंदाज में मुनि श्री ने कहा 10 साल में मॉ की अंगूली, 20 साल में खिलौने से खेल, 30 साल में आंखे घुमाना, चालीस साल में रात में खाना, 50 साल में होटल में जाना, 60 साल में वणिक वृत्ति, 70 साल में डनलप पर सोना, 80 साल में लस्सी पीना, 90 साल में ओर जीने की आशा तथा 100 वे साल में दुनिया छोड दो। जीवन का अर्थ समझ में आ जाएगा और सिद्ध भी हो जाएगा।

गलत तो तब होता.....

म्ुानि श्री ने जीवन में सहनशीलता और संयम के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा कि आज का इंसान सुनना नहीं चाहता। एक बात का जवाब दस बातो में देता है। सास की एक बात का जवाब बहु दस बातो में देती है। मॉ बेटे में, पिता पुतर्् में, मालिक नौकर में तकरार बनी ही रहती है मुनि श्री ने उदाहरण देते हुए कहा कि किसी व्यक्ति ने आवेश में आकर आपको कुत्ता कह दिया बस इतना कहते ही आपने भौकना शुरू कर दिया अब आप ही बताओं कि उसने गलत क्या कहा? गलत तो तब होता जब आप मौन रह जाते।

सास विपक्ष में नहीं होगी

म्ुानि श्री ने पारिवारिक कलह के स्थान पर परिवार में शांति की स्थापना के लिए कालजेयी सूतर्् प्रतिपादित करते हुए कहा यदि घर में बहु और बेटी में विवाद हो जाए तो समझदार सास को हमेशा बहु का पक्ष लेना चाहिए। जो सास विवाद की स्थिति में बहु का पक्ष लेगी वो कभी विपक्ष में नहीं बैठेगी। मुनि श्री ने कहा कि परिवार में पति पत्नी, सास-बहु, पिता-पुतर्् में से किसी भी एक में समझदारी हो तो वह परिवार हरिद्वार बन जाता है। मुनि श्री ने आज भी लडका लडकी में भेद करने की मानसिकता पर चिंता चताई और कहा कि वो सास धर्मात्मा नहीं है जो रोज मंदिर जाती है वो सास धर्मात्मा है जो बहु बेटी में फर्क नहीं समझती है।

चिडिया की चोच का पानी

जीवन में नकारात्मक दृष्टिकोण के स्थान पर सकारात्मक सोच अपनाने और अपनी क्षमता के अनुसार किसी का भला करने में पूरी उर्जा उण्डेलने का आहृवान करते हुए मुनि श्री ने घर में लगी आग और उस आग को बुझाने में चिडिया के किरदार को बडे ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत कर पूरे पाण्डाल के वातावरण को भावुकता में बदल दिया। मुनि श्री ने कहा कि तालाब किनारे बने घर में लगी आग को बुझाने के लिए एक चिडिया चोच में पानी लेकर लगातार प्रयास कर रही थी इस पर उसे एक बन्दर ने टोका और कहा कि तुम्हारी दो बुंद से आग नहीं बुझने वाली तो चिडिया ने उत्तर दिया मुझे पता है लेकिन मैं चाहती हूं कि जब भी इस आग की कहानी लिखी जाएगी तब मेरा नाम आग लगाने वालों में नहीं, आग बुझाने वालों में आएगा। मुनि श्री ने आहवान किया कि सामाजिक विसंगतियों, राष्ट्र में व्याप्त विदु्रपताओं और समस्याओं के समाधान में हमारी भूमिका भी चिडिया की चोच में भरे पानी की सोच जैसी होनी चाहिए।

महापुरूष का सार्टिफिकेट

मुनि श्री ने आम आदमी से उपर उठकर महापुरूष बनने की हसरत पूरी करने का सार्टिफिकेट देने का अपना अंदाजे बयां किया तो पाण्डाल ने हर्ष मिश्रित व्यंग्य का वातावरण पसर गया। मुनि श्री ने कहा कि संत तुकाराम की पत्नी तेज तर्रार थी, कालीदास की पत्नी तेज तर्रार थी, गोस्वामी तुलसीदास की पत्नी तेज तर्रार थी, यही नहीं शेक्सपीयर की पत्नी भी उतनी ही तेज तर्रार थी और ये सभी महापुरूष बने इसलिए यदि आपकी पत्नी भी तेज तर्रार है तो आप आज ही मुझने महापुरूष का सार्टिफिकेट ले जाइए। इस पर महिला और पुरूष दोनों ही भागों में हंसी के फव्वारे छुट पडे। और उपस्थित श्रद्धालु हाल ए बयां के गणित में खो गया।

विधायक बामनिया ने लिया आशीर्वाद

प्रवचन माला के तीसरे दिन बांसवाड़ा के विधायक अर्जुन बामनिया मुख्य अतिथि के रूप में सत्संग कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। 
उन्होंने मुनि श्री को श्रीफल भेट कर आशीर्वाद लिया। मुनि संघ सेवा समिति ने जैन समाज की ओर से उनका स्वागत किया। इससे पूर्व मांगीलाल कोठारी ने पद प्रक्षालन, कृष्ण मुरारी गौतम ने गुरू पूजन, सोहनलाल मेहता ने शास्तर्् भेट किए जबकि संजय, राजेश एवं नितेश गांधी तथा प्रदीप पिण्डारमिया, रतनलाल पिण्डारमिया को संलेखना तीर्थ का लाभार्थी होने पर सम्मान किया गया। महावीर जयंती पर बुधवार को मुनि श्री का प्रातः साढे आठ बजे कुशलबाग मैदान में विशेष प्रवचन होगा। 

Monday, April 2, 2012

समय के श्याम पट्ट पर पढ़ाया जीवन का गणित


जीवन में अनुकूलता सत्कर्मों का फल-मुनि तरूण सागर


प्रकाश पण्‍ड़या 
बांसवाड़ा, 2 अप्रेल। एक जिज्ञासु भक्त ने बहती गंगा से पूछा मईया इतने पापो को सहन कैसे करती हो, गंगा ने उत्तर दिया इन पापो को बहा-बहा के समुद्र को सौप देती हूं। भक्त ने समुद्र से पूछा आप इन पापों का क्या करते है? समुद्र ने उत्तर दिया भीषण गम में वाष्प में परिवर्तित कर आसमान को सौप देता हूं। वही प्रश्न आसमान से पूछा तो उत्तर मिला जिसके होते है वर्षाकाल में उसी के सर पटक देता हूं। जीवन में अनुकूलताए सत्कर्मो का और प्रतिकुलताएं अपने ही दुष्कर्मो का फल है। पाप और पुण्य के बुते जीवन संवारने और मृत्यु सुधारने का गणित कडवे प्रवचन माला के दूसरे दिन राष्ट्रसंत तरूणसागर जी महाराज की कक्षा में हजारों श्रद्धालुओं ने नन्हें शिष्य बनकर खूब पढा। प्रवचनमाला के दूसरे मुनि श्री ने श्रद्धालुओंं को सावचेत करते हुए जीवन के सत्य का पाठ पढाया और कहा कि परमात्मा के समक्ष प्रार्थना जरूर करना लेकिन याचना मत करना। चतुराई दिखानें की भूल तो भूलकर भी मत करना। बच्चे जैसा भोलापन और मीरा जैसा पागलपन ही ईश्वर तक ले जाएगा। चतुराई ईश्वर के समक्ष काम नहीं आती है। जीवन के कई महत्वपूर्ण फलसफे जाहिर करते हुए मुनि श्रीने कहा कि संकट के समय केवल भगवान ही साथ देता है। दूसरा कोई साथ देता है तो स्वयं की हिम्मत। उन्होंने व्यंग्य के लहजे में कहां कि हाथ में यदि टाइटन घडी हो तो दुनिया साथ देगी लेकिनसंकट की घड़ी हो तो केवल परमात्मा ही साथ होंगे। उन्होंने बुरे कर्मो से सदैव बचकर रहने की नसीहत दी। और कहा कि यदि जीवन सुधरता है तो मृत्यु अपने आप सुधर जाती है। आज सुधरता है तो कल अपने आप सुधर जाएगा लेकिन अतीत और औकात नहीं भूलनी चाहिए। दुःख में घबराना नहीं और सुख में इतराना नहीं। यही जीवन की सफलता का मूल मंत्र है।


जिन्दगी रेल्वे लाईन नहीं है

मुनि श्री ने जीवन में आने वाले उतार चढावों और सुख दुख का महत्व प्रतिपादित करते हुए कहा कि जीवन में दोनों ही आवाजाही न चाहते हुए भी बनी रहेगी।उन्होंने कहा कि जीवन रेल्वे लाईन नहीं है जो समानान्तर चलता रहे जीवन तो गंगा की धारा है कई मुडाव और मोड पार करते हुए गिरते उठते हुए समुद्र तक की यात्र तय करती है लेकिन अपनी पवितर््ता पर आंच नहीं आने देती। जीवन में दुख आए तो उसका प्रसाता पूर्वक स्वागत करना क्योकि दुःख उस ढीठ महमान की तरह है जों आगे का दरवाजा बंद कर दोगे तो पीछे के दरवाजे से आएगा दोनो दरवाजे बंद कर दोंगे तो खिडकी से आएगा और खिडकी भी बंद मिली तो छप्पर फाड कर या फर्श तोड कर आएगा। इसलिए सुख का और दुख का समागम ही जीवन में पूर्णता लाता है। उन्हाेंने सुख को मिठाई और दुख को नमकीन की संज्ञा देते हुए कहा कि दोनों के बराबर उपयोग से ही स्वाद का अनुपात बना रहता है।

गुफ्तगू अथ और डोली की
मुनि श्री ने वर्तमान को सुधारने, जीवन को संवारने और आज को उपयोगी बनाने का आहवान करते हुए कहा कि आज का इंसान डोली को सजाने के प्रति तो चिन्तित है लेकिन अथ को सजाने के लिए उसे चिन्ता नहीं है। मुनि श्री ने कहा कि अथ का सारा सामान तैयार है। बस आर्डर देने भर की देर है लेकिन इस सत्य से यह दुनिया जानकर भी अंजान बनी रहती है। उन्होंने कहा कि एक बार मेरे कानों में डोली सजा के रखना गीत के शब्द पडे वही से मेरा चिन्तन शुरू हुआ और मैने कहा डोली नहीं अथ सजा के रखना हर इंसान को अपनी अस्थिया बिखरे इससे पहले परमात्मा के प्रति आस्था और चिता जले इससे पहले चेतना जगा लेनी चाहिए। मुनि श्री ने श्रद्धालुओं की आंखों खोलने हुए यह प्रश्न भी रखा कि मृत व्यक्ति की देह बांध कर अन्तिम संस्कार के लिए ले जाया जाता है। मेरी समझ में आज तक नहीं आया कि मरे को बंधन क्याें? आखिर अब वह कहां जाने वाला है?

वो अपनी गोद में उठा लेगा

मीरा की भक्ति और उस अनन्य भक्ति पर एक ना समझ साधक द्वारा किए गए व्यंग्य का दृष्टान्त देते हुए मुनि श्री ने कहा कि एक बार मीरा के पद सुनकर एक अन्य भक्त ने दिवार पर लिख दिया कि राग में गाया करो दूसरे दिन मीरा ने उसी दिवार पर लिखी इबारत को सकारात्मक दृष्टि देते हुए जोड़ कर लिखकर अनुराग से गाया करो। भक्त ने दोनों में फर्क पूछा तो मीरा ने कहा कि राग से दुनिया प्रसन्न होती है लेकिन अनुराग से गाए हुए से मेरा जगदीश प्रसा होता है। मुनि श्री ने कहा कि एक बार  संकट में घिरे साधक ने चलना शुरू किया सुनसान राह पर चलते हुए उसने देखा कि उसके दो पैरो के अलावा किसी और शख्स के पैरो के निशान भी है उससे भयानक संकट में आने पर उसने महसूस किया कि अब वह अकेला है अन्य दो पैरो के निशान गायब है। आसमान की तरफ निगाहे कर परमात्मा को उलाहना देते हुए कहा है ईश्वर आखिर तुमने भी संकट में मेरा साथ छोड दिया न तभी परमात्मा ने कहा हे भक्त ये दो पैरो के निशान जो दिख रहे है वह मैेरे है संकट में तुझे मैने गोद में उठा लिया था। मुनि श्री ने कहा कि दुनिया से आसक्ति दुख देगी भगवान से आस्था संकट के समय गोद में उठाकर चलेंगी।

मुख मन और मेहमान

मुनि श्री ने वर्तमान समय के दोहरे चरितर्् की जिंदगी जीने वाले मानव पर व्यंग्य करते हुए कहा आज का इंसान दोहरा चरित्र जीता है उसके लिए कसौटी भी अलग अलग है। अपने लिये अलग कसौटी और गैरो के लिए अलग। मुनि श्री ने उदाहरण देते हुए कहा कि आज का इंसान इतना चतुर और शठी हो गया है कि वह अपनी मनमर्जी से अर्थ निकालता है। खुद का दिवाला निकल जाए तो कहता है भगवान की मर्जी और पड़ौसी का निकले तो कहेगा पाप का घडा भर गया था एक दिन तो फुटना ही था। घर में मेहमान आने पर मन और मुख दोनों से अलग अलग प्रतिक्रियाएं व्यक्त करता है मुख से कहता है अहोभाग्य जो आप हमारे घर पधारे लेकिन मन से कहता है कमबख्त कहां से आ टपका। दिनभर कर प्लान ही बिगाड दिया। मुनि श्री ने कहा कि यह दोहरा चरित्र दुनिया वालों के साथ तो चल जाएगा ईश्वर के सामने नहीं चलने वाला। मुनि श्री ने अच्छे और बुरे कर्म के प्रति आगाह किया औैर कहा बुरे कर्म का बुरा नतीजा ना माने तो करके देख जिन लोगों ने बुरा किया है उन लोगों के घर को देख।

गुरू मंत्र दीक्षा 6 को

राष्ट्र संत तरूण सागर जी महाराज के सानिध्य मेंगुरू मंत्र दीक्षा का कार्यक्रम आगामी 6 अप्रेल को होगा। गुरू मंत्र दीक्षा में तरूण मंच गुरू परिवार के सदस्य बनाने के साथ ही मंत्र दीक्षा दी जाएगी। इससे पूर्व आज सत्संग के शुभारंभ में देवेश त्रिवेदी एवं खुशपाल दोसी परिवार ने पग प्रक्षालन, शास्त्र भेंट, गुरू पूजन के बाद भगवान महावीर स्वामी के चित्र का अनावरण किया। नगरपरिषद बांसवाडा के सभापति राजेश टेलर आज के सत्संग प्रवचन माला के मुख्य अतिथि थे। इस दौरान संलेखना तीर्थ के प्रमुख श्रद्धालुओं कल्पेश, कीर्ति मलावत, कृष्ण मुरारी अग्रवाल, विनोद दोसी, अनिल दोसी, महिपाल दोसी, शान्तिलाल दोसी, हंसमुख शाह ने मुनि श्री को श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद लिया और जैन समाज की ओर से इनका बहुमान किया गया। आरंभ में मुनि श्री की दीक्षा भूमि बागीदौरा सेआए तरूण मंच दीक्षा भूमि परिवार के सदस्यों ने मुनि श्री के समक्ष उपस्थित होकर आशीर्वाद लिया। कार्यक्रम का संचालन ब्रह्मचारी सचिन भैयाजी ने किया। 

Sunday, April 1, 2012

कड़वे प्रवचन की पहली भोर, प्रार्थना और परिवर्तन पर जोर



संसार का कोहराम अर्ध सत्य की देन-राष्ट्रसन्त तरूणसागरजीपहले ही दिन छोटा पड़ा पांडाल

-प्रकाश पंडया

बांसवाड़ा, 01,अप्रेल।
 
क्रांतिकारी राष्ट्रसन्त मुनि तरूणसागजी महाराज की कड़वे प्रवचन माला का शुभारम्भ बांसवाड़ा के ऐतिहासिक कुशलबाग मैदान में  रविवार को ध्वजारोहण, मण्डप उदघाटन, गुरूचरण प्रक्षालन, शास्त्र भेंट, श्रीफल अर्पण तथा भगवान महावीर स्वामी के चित्र अनावरण के साथ हुआ।
मुनि श्री के प्रवचनों के माध्यम से जीवन उद्धार की खोज में उमड़ी जन मैदिनी को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रसन्त ने प्रवचन माला के पहले दिन हजारों जिज्ञासु श्रद्धालु श्रोताओं को प्रार्थना और जीवन में स्वयं के आचरण में परिवर्तन का आहवान किया। मुनिश्री ने कहा कि आज का मानव पूर्ण सत्य से अनभिज्ञ है संसार में जो कुछ विसंगतियाँ व्याप्त है तथा जो कोहराम मचा हुआ है वह अर्ध सत्य की देन है मनुष्य ने पाण्डाल में उमड़े हजारों श्रद्धालुओं के हुजुम को जीवन के परम सत्य से रूबरू कराते हुए कहा कि जब तक इंसान अधूरे सत्य की गिरफ्त में रहेगा तब तक उसे दुखों का सामना करते रहना पड़ेगा। प्रवचन माला के पहले दिन मुनि श्री ने जीवन कल्याण के सूत्र प्रतिपादित किये साथ ही सत्य, सफलता, अहंकार मुक्त जीवन के साथ मानव योनी को सफल बनाने की राह प्रशस्त की।

हम इकसठवे माले पर, चाबी .............

मुनि श्री ने कहा कि आज का मानव जीवन का मकसद भूल गया है लक्ष्य से भटकाव उसे मानवीय दायित्वों से दूर कर रहा है। मुनिश्री ने मनोविनोद शैली में प्रेरणास्पद संस्मरण सुनाते हुए कहा कि कर्इ बार मुम्बर्इ महानगर में किसी सत्तर मंजिला र्इमारत के इकसठवे माले पर रहने वाले चार मित्रो को बिजली खुल होने के कारण सीढि़याँ चल कर अपने आवास तक पहुँचना पड़ा यह दूरी तय करने लिए बारी-बारी से कहानी सुनानी तय किया। आखिरी चौथे मित्र की बारी आने पर उसने अपने मित्रों से आश्वासन मांगा कि वे कहानी सुनाने पर उसकी पिटार्इ नहीं करेंगे। कहानी क्या थी दर्द की दास्तान थी। इकसठवे माले पर जा कर चौथे मित्र ने कहा बड़ी तकलीफ के साथ कहा कि चाबी नीचे गाड़ी में रह गर्इ है। मुनिश्री ने कहा कि आज अधिकांश लोगो को जीवन भी ऐसा ही हो गया है खुद तो इकसठवे माले पर है मगर जिन्दगी जीने के सूत्र की चाबी नीचे पड़ी हुर्इ है। इन्सान मरघट तक पहुँचने की यात्रा तक भी जिन्दगी जीने के तरीके की चाबी नही खोज पा रहा है।


सफलता ले जाती बाथरूम

  प्रवचन माला के पहले दिन मुनिश्री ने अपनी चीर परिचित शैली में प्रवचन करते हुए वीर रस भावों में हास परिहास भी खूब घोला। मुनिश्री ने जीवन में तनिक सफलता पा लेने वाले अहंकारी और अल्पज्ञानी लोगो पर व्यंग्य करते हुए कहा जीवन में ऐसी सफलता किस काम की जो मनुष्य की सेवा के लिए उनके बीच न ले जाकर बाथरूम में कैद कर दे। मुनिश्री ने कहा कि अक्सर ऐसा अनुभव किया जाता है कि कोर्इ आदमी थोड़ी सी सफलता हासिल कर लेता है और उससे आमजन बात करने का प्रयास करता है तो लगातार एक ही उत्तर मिलता है साहब बाथरूम में है मुनिश्री ने आगाह किया कि जीवन में यदि उपलबिध मिल जाये तो उसका उत्सव तो मनाओ लेकिन अहंकार को अपने पर हावी मत होने दो।

मलार्इ का मलाल
  मुनिश्री ने कहा एक सामान्य गृहिणी दूध उबालते समय यदि मलार्इ नीचे गिर जाए तो दिनभर मलाल करती रहती है यही हाल सांसारिक जीवन जीने वाले हर शक्स हो रहा है मुनिश्री ने कहा कि रोटी बिगड़ जाए, व्यापार बिगड़ जाए, रिश्तेदार बिगड़ जाए यहाँ तक कि जिन्दगी में भारी से भारी नुकसान हो तो चिन्ता मत करना बस इस बात का ध्यान रखना कि मन न बिगड़ पाए उन्होनें कहा कि दु:ख, कष्ट, चिन्ता, परेशानी और प्रतिकूलता में हिम्मत से काम लो छोटे नुकसान के लिए जी मत जलाओं ग्राहक की जेब पर नहीं उसके दिल पर नजर रखों। जेब पर नजर रखोगे तो जेब कतरे बन जाओगे और दिल पर नजर रखोगे तो पुण्य कमाओगे।

जब सत्संग से लौटो तो ..............
  मुनिश्री ने कहा कि दुनिया नही बदलेगी स्वयं में परिवर्तन लाना होगा। उन्होंने कहा सत्संग में आने का अर्थ घर लौटकर महसूस होना चाहिए। मुनिश्री ने कहा कि सास सत्संग से लौटे तो बहु को लगे वे गंगाजी नहा के आर्इ है। बहू सत्संग से लौटे तो सास के मन में आत्मीयता उमड़नी चाहिए। पिता सत्संग से लौटे तो पुत्र के मन से तिजौरी की चाबी हाथ लगने के भाव समाप्त हो जाने चाहिए और पुत्र सत्संग से लौटे तो दुनिया पिता को सराहते हुए कहे कि किन पुण्यों और तपस्याओं का फल है जो ऐसा पुत्र पाया है।

मैं लुहार की बात करूँगा ...............
  मुनिश्री ने कहा कि मैं सुनार की नही लुहार की बात करूँगा एक समय था जब मे भी मीठे प्रवचन करता था लेकिन उन मीठे प्रवचनों मे आने वाले दस-बीस लोग सुनते नही बलिक निद्रामग्न हो जाते थे मजबूर होकर मुझे कड़वे प्रवचन करना शुरू करना पड़ा मुनिश्री ने कहा कि मीठे प्रवचन सन्त के मुख से निकलकर श्रोता के कान पर खत्म हो जाते है। लेकिन कड़वे प्रवचन मुख से निकलकर श्रोता के कर्णद्वार को चीरते हुए सीधे दिल को छू जाते है मुनिश्री ने चैत्र मे नीम रस पान की कड़वाहट और कड़वे प्रवचनों की कटूता मे फर्क बताते हुए कहा कि नीम रस तन की बीमारी दूर करते है जबकि कड़वे प्रवचन मन को स्वस्थ और प्रसन्न रखते है।


आधे दु:ख उधार के .............
  मुनिश्री ने कहा कि आज का इंसान अपने स्वयं की करतूत के कारण दुखी है उन्होंने कहा कि आज का मनुष्य अपने में नहीं जीता भगवान महावीर ने कहा है अपने होने में राजी हो जाओ दुख नहीं सतायेंगे। झुठी शान शौकत में जीवन बिताने की आदत हमें दुखी बना रही है। गरीब होना दुख नहीं है कर्जदार होना दुख है मुनिश्री ने व्यंग्य के लहजे में कहा मेरे सपने में बापू आए और पूछा देश में क्या हो रिया है मैंने कहा बापू चादर है छोटी और पैर पसार कर सो रिया है इसलिए सारा देश रो रिया हैं। मुनिश्री ने कहा कि हमारे दुख र्इष्र्या जनित है अमरिका में बिजली गुल होने पर बिजली विभाग के दफ्तर फोन लगाया जाता है, बि्रटेन में घर का फ्यूज देखा जाता है लेकिन भारत में पड़ौसी के घर में झांका जाता है यह देखने के लिए कि उसके यहाँ गर्इ या नहीं  यदि पड़ौसी की बिजली भी गुल है तो संतोष का विषय है।

तुमने पुकारा और हम  .............
  मुनिश्री ने कहा कि इस धरती पर चार तरह के इंसान रहते है एक भाग्यशाली दुसरे सौभाग्यशाली तीसरे महाभाग्यशाली और चौथे दुर्भाग्यशाली। भाग्यशाली वे है जिनके पास धन है सौभाग्यशाली वे है जिनके पास धन और स्वास्थ्य दोनो है महाभाग्यशाली वे है जिनके पास धन, स्वास्थ्य के साथ धर्म भी है लेकिन दुर्भाग्यशाली के पास धन, स्वास्थ्य और धर्म में से कुछ नहीं होता है। मुनिश्री ने कहा कि भाग्यशाली बने रहना है तो धन को दान करो मुनिश्री ने भक्तों की श्रेणियाँ बतार्इ और कहाँ कि भक्त के पास पुकार होती है उस पुकार में बहुत ताकत होती है। वह ताकत जो मीरा के मुख से निकल कर Ñष्ण को बुला लाती है, हनुमान के मुख से निकलकर राम को बुला लाती है, चन्दनबाला के मुख से निकलकर महावीर को बुला लाती है और बाँसवाड़ा वासियों से मुख निकलकर तरूणसागर को बुला लाती है। इस पर पाण्डाल में तुमने पुकारा हम चले आए के साथ गुरूदेव का जयकारा गूंज उठा।

ध्वजा रोहण और मण्डप उदघाटन  .............
  मुनिश्री के कुशलबाग मैदान में मंगल प्रवेश के साथ ही बलभ्रद जैन परिवार ने ध्वजारोहण, छगनलाल मेहता ने मण्डप उदघाटन किया। सुरेश वाडेकर व लक्ष्मी साहू के मंगलाचरण के बाद महावीर गंगवाल ने शास्त्र भेंट किए। संजय,राजेश व हितेश गांधी ने पद प्रक्षालन किया। पंचोरी परिवार ने गुरू पूजन कर अघ्र्य अर्पित किया। रानी चेलना मंच की ओर से भकितपूर्ण नृत्य प्रस्तुति दी गर्इ। प्रथम दिवस प्रवचन माला के प्रमुख अतिथि जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी आर.एन.चाहिल विशिष्ट अतिथि छगनलाल मेहता ने भगवान महावीर स्वामी के चित्र का अनावरण किया और श्रीफल भेंट कर मुनिश्री का आशीर्वाद लिया। इस अवसर पर सल्लेखना तीर्थ के लिए परम शिरोमणि संरक्षक प्रितेश भुता सहित विभिन्न समितियों के संयोजक का बहुमान किया। समारोह का संचालन ब्रम्हचारी सचिन भैयाजी ने किया। मुनि श्री के प्रवचन आगामी 5 अप्रेल तक रोजाना प्रात: 8.30 बजे से शुरु होंगे। शाम 6 बजे पृथ्वी क्लब में रोजाना आनन्द यात्रा का कार्यक्रम होगा।