Monday, April 2, 2012

समय के श्याम पट्ट पर पढ़ाया जीवन का गणित


जीवन में अनुकूलता सत्कर्मों का फल-मुनि तरूण सागर


प्रकाश पण्‍ड़या 
बांसवाड़ा, 2 अप्रेल। एक जिज्ञासु भक्त ने बहती गंगा से पूछा मईया इतने पापो को सहन कैसे करती हो, गंगा ने उत्तर दिया इन पापो को बहा-बहा के समुद्र को सौप देती हूं। भक्त ने समुद्र से पूछा आप इन पापों का क्या करते है? समुद्र ने उत्तर दिया भीषण गम में वाष्प में परिवर्तित कर आसमान को सौप देता हूं। वही प्रश्न आसमान से पूछा तो उत्तर मिला जिसके होते है वर्षाकाल में उसी के सर पटक देता हूं। जीवन में अनुकूलताए सत्कर्मो का और प्रतिकुलताएं अपने ही दुष्कर्मो का फल है। पाप और पुण्य के बुते जीवन संवारने और मृत्यु सुधारने का गणित कडवे प्रवचन माला के दूसरे दिन राष्ट्रसंत तरूणसागर जी महाराज की कक्षा में हजारों श्रद्धालुओं ने नन्हें शिष्य बनकर खूब पढा। प्रवचनमाला के दूसरे मुनि श्री ने श्रद्धालुओंं को सावचेत करते हुए जीवन के सत्य का पाठ पढाया और कहा कि परमात्मा के समक्ष प्रार्थना जरूर करना लेकिन याचना मत करना। चतुराई दिखानें की भूल तो भूलकर भी मत करना। बच्चे जैसा भोलापन और मीरा जैसा पागलपन ही ईश्वर तक ले जाएगा। चतुराई ईश्वर के समक्ष काम नहीं आती है। जीवन के कई महत्वपूर्ण फलसफे जाहिर करते हुए मुनि श्रीने कहा कि संकट के समय केवल भगवान ही साथ देता है। दूसरा कोई साथ देता है तो स्वयं की हिम्मत। उन्होंने व्यंग्य के लहजे में कहां कि हाथ में यदि टाइटन घडी हो तो दुनिया साथ देगी लेकिनसंकट की घड़ी हो तो केवल परमात्मा ही साथ होंगे। उन्होंने बुरे कर्मो से सदैव बचकर रहने की नसीहत दी। और कहा कि यदि जीवन सुधरता है तो मृत्यु अपने आप सुधर जाती है। आज सुधरता है तो कल अपने आप सुधर जाएगा लेकिन अतीत और औकात नहीं भूलनी चाहिए। दुःख में घबराना नहीं और सुख में इतराना नहीं। यही जीवन की सफलता का मूल मंत्र है।


जिन्दगी रेल्वे लाईन नहीं है

मुनि श्री ने जीवन में आने वाले उतार चढावों और सुख दुख का महत्व प्रतिपादित करते हुए कहा कि जीवन में दोनों ही आवाजाही न चाहते हुए भी बनी रहेगी।उन्होंने कहा कि जीवन रेल्वे लाईन नहीं है जो समानान्तर चलता रहे जीवन तो गंगा की धारा है कई मुडाव और मोड पार करते हुए गिरते उठते हुए समुद्र तक की यात्र तय करती है लेकिन अपनी पवितर््ता पर आंच नहीं आने देती। जीवन में दुख आए तो उसका प्रसाता पूर्वक स्वागत करना क्योकि दुःख उस ढीठ महमान की तरह है जों आगे का दरवाजा बंद कर दोगे तो पीछे के दरवाजे से आएगा दोनो दरवाजे बंद कर दोंगे तो खिडकी से आएगा और खिडकी भी बंद मिली तो छप्पर फाड कर या फर्श तोड कर आएगा। इसलिए सुख का और दुख का समागम ही जीवन में पूर्णता लाता है। उन्हाेंने सुख को मिठाई और दुख को नमकीन की संज्ञा देते हुए कहा कि दोनों के बराबर उपयोग से ही स्वाद का अनुपात बना रहता है।

गुफ्तगू अथ और डोली की
मुनि श्री ने वर्तमान को सुधारने, जीवन को संवारने और आज को उपयोगी बनाने का आहवान करते हुए कहा कि आज का इंसान डोली को सजाने के प्रति तो चिन्तित है लेकिन अथ को सजाने के लिए उसे चिन्ता नहीं है। मुनि श्री ने कहा कि अथ का सारा सामान तैयार है। बस आर्डर देने भर की देर है लेकिन इस सत्य से यह दुनिया जानकर भी अंजान बनी रहती है। उन्होंने कहा कि एक बार मेरे कानों में डोली सजा के रखना गीत के शब्द पडे वही से मेरा चिन्तन शुरू हुआ और मैने कहा डोली नहीं अथ सजा के रखना हर इंसान को अपनी अस्थिया बिखरे इससे पहले परमात्मा के प्रति आस्था और चिता जले इससे पहले चेतना जगा लेनी चाहिए। मुनि श्री ने श्रद्धालुओं की आंखों खोलने हुए यह प्रश्न भी रखा कि मृत व्यक्ति की देह बांध कर अन्तिम संस्कार के लिए ले जाया जाता है। मेरी समझ में आज तक नहीं आया कि मरे को बंधन क्याें? आखिर अब वह कहां जाने वाला है?

वो अपनी गोद में उठा लेगा

मीरा की भक्ति और उस अनन्य भक्ति पर एक ना समझ साधक द्वारा किए गए व्यंग्य का दृष्टान्त देते हुए मुनि श्री ने कहा कि एक बार मीरा के पद सुनकर एक अन्य भक्त ने दिवार पर लिख दिया कि राग में गाया करो दूसरे दिन मीरा ने उसी दिवार पर लिखी इबारत को सकारात्मक दृष्टि देते हुए जोड़ कर लिखकर अनुराग से गाया करो। भक्त ने दोनों में फर्क पूछा तो मीरा ने कहा कि राग से दुनिया प्रसन्न होती है लेकिन अनुराग से गाए हुए से मेरा जगदीश प्रसा होता है। मुनि श्री ने कहा कि एक बार  संकट में घिरे साधक ने चलना शुरू किया सुनसान राह पर चलते हुए उसने देखा कि उसके दो पैरो के अलावा किसी और शख्स के पैरो के निशान भी है उससे भयानक संकट में आने पर उसने महसूस किया कि अब वह अकेला है अन्य दो पैरो के निशान गायब है। आसमान की तरफ निगाहे कर परमात्मा को उलाहना देते हुए कहा है ईश्वर आखिर तुमने भी संकट में मेरा साथ छोड दिया न तभी परमात्मा ने कहा हे भक्त ये दो पैरो के निशान जो दिख रहे है वह मैेरे है संकट में तुझे मैने गोद में उठा लिया था। मुनि श्री ने कहा कि दुनिया से आसक्ति दुख देगी भगवान से आस्था संकट के समय गोद में उठाकर चलेंगी।

मुख मन और मेहमान

मुनि श्री ने वर्तमान समय के दोहरे चरितर्् की जिंदगी जीने वाले मानव पर व्यंग्य करते हुए कहा आज का इंसान दोहरा चरित्र जीता है उसके लिए कसौटी भी अलग अलग है। अपने लिये अलग कसौटी और गैरो के लिए अलग। मुनि श्री ने उदाहरण देते हुए कहा कि आज का इंसान इतना चतुर और शठी हो गया है कि वह अपनी मनमर्जी से अर्थ निकालता है। खुद का दिवाला निकल जाए तो कहता है भगवान की मर्जी और पड़ौसी का निकले तो कहेगा पाप का घडा भर गया था एक दिन तो फुटना ही था। घर में मेहमान आने पर मन और मुख दोनों से अलग अलग प्रतिक्रियाएं व्यक्त करता है मुख से कहता है अहोभाग्य जो आप हमारे घर पधारे लेकिन मन से कहता है कमबख्त कहां से आ टपका। दिनभर कर प्लान ही बिगाड दिया। मुनि श्री ने कहा कि यह दोहरा चरित्र दुनिया वालों के साथ तो चल जाएगा ईश्वर के सामने नहीं चलने वाला। मुनि श्री ने अच्छे और बुरे कर्म के प्रति आगाह किया औैर कहा बुरे कर्म का बुरा नतीजा ना माने तो करके देख जिन लोगों ने बुरा किया है उन लोगों के घर को देख।

गुरू मंत्र दीक्षा 6 को

राष्ट्र संत तरूण सागर जी महाराज के सानिध्य मेंगुरू मंत्र दीक्षा का कार्यक्रम आगामी 6 अप्रेल को होगा। गुरू मंत्र दीक्षा में तरूण मंच गुरू परिवार के सदस्य बनाने के साथ ही मंत्र दीक्षा दी जाएगी। इससे पूर्व आज सत्संग के शुभारंभ में देवेश त्रिवेदी एवं खुशपाल दोसी परिवार ने पग प्रक्षालन, शास्त्र भेंट, गुरू पूजन के बाद भगवान महावीर स्वामी के चित्र का अनावरण किया। नगरपरिषद बांसवाडा के सभापति राजेश टेलर आज के सत्संग प्रवचन माला के मुख्य अतिथि थे। इस दौरान संलेखना तीर्थ के प्रमुख श्रद्धालुओं कल्पेश, कीर्ति मलावत, कृष्ण मुरारी अग्रवाल, विनोद दोसी, अनिल दोसी, महिपाल दोसी, शान्तिलाल दोसी, हंसमुख शाह ने मुनि श्री को श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद लिया और जैन समाज की ओर से इनका बहुमान किया गया। आरंभ में मुनि श्री की दीक्षा भूमि बागीदौरा सेआए तरूण मंच दीक्षा भूमि परिवार के सदस्यों ने मुनि श्री के समक्ष उपस्थित होकर आशीर्वाद लिया। कार्यक्रम का संचालन ब्रह्मचारी सचिन भैयाजी ने किया। 

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