Saturday, April 7, 2012

जल रंगोली में उकेरी हस्तियों में राष्ट्रसंत तरूण सागर महाराज



- जल के दिल पर क्रांतिकारी संत का जलवा

अपनी विलक्षण प्रवचन अभिव्यक्ति के जरिए विश्व के करोड़ो श्रद्धालुओं के दिल में श्रद्धा, आस्था और भक्ति के साथ स्थान बनाने वाले क्रांतिकारी राष्ट्र संत मुनि श्री तरूण सागर महाराज को जल ने भी अपने दिल में जगह दे दी है।
मध्यप्रदेश के देवास शहर में एक कला साधक शिक्षक राजकुमार चंदन ने अपने सहयोगियो के साथ जल में 20वीं सदी के 101 नामचीन हस्तियों के चित्र पानी पर रंगोली के रूप में उकेरे और अपना नाम लिम्का बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में दर्ज करा लिया है। उन्हें 101 चित्र पानी पर रंगोली में 25 घंटो में पूरे करने की चुनौती दी गई थी। उन्होने यह काम चुनौती वाले समय के विपरित 24 घंटे 34 मीनट में पूरा कर लिया।

101 हस्तियों में तरूण सागर का जलवा

पानी पर रंगोली ने भारत के जिन महापुरूषो और ख्यातनाम हस्तियों को उकेरा गया उनमें रंगोली के मध्य में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, नीचे के भाग में चन्द्रशेखर आजाद, पश्चिमी छोर पर लाला लाज पतराय तथा पूर्वी छोर पर राष्ट्रसंत तरूण सागर महाराज का चित्र शामिल है। अन्य हस्तियों में पण्डित जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, गुरू गोलवलकर, अबुल कलाम आजाद, भगतसिंह, सुभाषचन्द्र बोस, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, डॉ. राधा-कृष्णन के अलावा आध्यात्मिक हस्तियों में बोहरा समाज के धर्मगुरू सैयदना साहब, श्री श्री रविशंकर, योग गुरू स्वामी रामदेव भी शामिल है।
ऐसे उकेरी जाती है रंगोली
पानी में रंगोली बनाने के लिए सधे हुए हाथ और इस कला की लम्बे समय के तजूर्बे की आवश्यकता होती है। पानी के किनारो पर लकड़ी के बुरादे से प्राकृतिक रंग तैयार कर चित्रकारी के लिए प्रयुक्त रंगो व बांधे रखने के लिए फोम की बोर्डर बनाई जाती है ताकि रंग स्थिर रहे। बोर्डर के भीतर रंग भरे जाते है और अपनी पसन्द के किरदारो को उकेरा जाता है जो उनके चित्र के रूप में उभरकर मुकम्मिल छवि के रूप में उभरते है।

महाभारतकालीन कला है जल रंगोली

जल में रंगोली महाभारत समय की अदभूत कला है जिसे देवास के कला साधक शिक्षक राजकुमार चंदन ने पुर्नजीवित किया है। कहा जाता है कि राजसुय यज्ञ में कौरव और पाण्डव दोनो आमंत्रित किये गये थे। आमंत्रित राजे महाराजाओं के लिए सम्मान में रंगोली बनाई गई थी। वह रंगोली भी जल में ही थी, जिसे दुुर्योधन कालीन समझकर उस कुण्ड में गिर गया था। उसके गिरने पर द्रोपदी ने ठहाका लगाते हुए दुर्योधन पर अंधे का बेटा अंधा व्यंग बाण छोडक़र परोक्ष रूप से महाभारत के युद्ध के कारणों में व्यंग की चिंगारी फेंक दी थी। माना जाता है कि इस कला के लिए कोई प्रशिक्षण केन्द्र नहंी ओर न ही देश में इस तरह की कला का कोई साधक मौजुद है। राजकुमार चंदन देश में इस कला के एक अकेले विलक्षण कलाकार है।

No comments:

Post a Comment